बृहदीश्वर शिवमंदिर - भारतीय वास्तुशिल्प की गौरव गाथा का शंखनाद

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कावेरी नदी के तट पर पिछले 1000 वर्षों से गर्व के साथ अविचल खड़े हुए 790 फुट (240.90 मीटर) लम्बे, 400 फुट (122 मीटर) चौड़े तथा 216 फुट (66 मीटर) ऊंचे इस बृहदीश्वर शिव मंदिर से सम्बंधित पहला आश्चर्य यह है कि इस मंदिर की कोई

बृहदीश्वर शिवमंदिर पिछले एक हजार वर्षों से चमत्कारिक प्राचीन भारतीय वास्तुशिल्प विज्ञान की गौरव गाथा सुना रहा है...


चेन्नई से 310 कि.मी. दूर तंजावुर (तंजौर) में कावेरी नदी के तट पर स्थित बृहदीश्वर शिव मंदिर पिछले 1000 वर्षों से प्राचीन भारतीय वास्तुशिल्प विज्ञान की गौरव गाथा का शंखनाद कर रहा है।

इस शिवालय की निर्माण तकनीक तथा उसके मस्तक पर मुकुट की भांति विराजमान उसका विशालकाय गुम्बद समस्त विश्व के वास्तुशिल्प वैज्ञानिकों के लिए आज भी एक रहस्यमय अनसुलझी पहेली बना हुआ है।चोल वंश के राजाराज चोल - प्रथम इस मंदिर के प्रवर्तक थे। यह मंदिर उनके शासनकाल की गरिमा का श्रेष्ठा उदाहरण है।चोल वंश के शासन के समय के वास्तुशिल्प विज्ञान की यह एक श्रेष्ठतम उपलब्धि है। मंदिर में स्थित लगभग 29 फुट (8.7 मीटर) ऊंचा शिवलिंग विश्व के सबसे विशाल शिवलिंगों में से एक है।

राजाराज चोल- प्रथम के शासनकाल में यानि 1010 एडी में यह मंदिर पूरी तरह तैयार हुआ। वर्ष 2010 में इसके निर्माण के एक हजार वर्ष पूरे हो गए हैं।

कावेरी नदी के तट पर पिछले 1000 वर्षों से गर्व के साथ अविचल खड़े हुए 790 फुट (240.90 मीटर) लम्बे, 400 फुट (122 मीटर) चौड़े तथा 216 फुट (66 मीटर) ऊंचे इस बृहदीश्वर शिव मंदिर से सम्बंधित पहला आश्चर्य यह है कि इस मंदिर की कोई आधारशिला (नींव) नहीं है। इतने विशालकाय भवन का निर्माण बिना नींव के किया गया है।

दूसरा आश्चर्य यह है कि बिना नींव के निर्मित इस विशालकाय मंदिर के निर्माण में पत्थरों को चूने, सीमेंट या भवन निर्माण में उपयोग किए जाने वाले किसी भी प्रकार के ग्लू से जोड़ा चिपकाया नहीं गया है।

बृहदीश्वर शिव मंदिर के निर्माण में पत्थरों को पजल्स सिस्टम से जोड़ा गया है। पत्थजरों को इस तरह काटकर एक दूसरे के साथ फिक्स किया गया है कि वे एकदूसरे से कभी अलग नहीं हो सकते। मंदिर को एक के ऊपर एक लगे हुए 14 आयतों द्वारा बनाया गया है, जिन्हें बीच से खोखला रखा गया है। 14वें आयत के ऊपर एक बड़ा और लगभग 88 टन भारी गुम्बद रखा गया है। यह गुम्बद वर्तमान आधुनिक वैज्ञानिक युग में भी विश्व के वास्तुशिल्प वैज्ञानिकों को चौंका रहा है।

एक चट्टान को तराश कर बने इस (सिंगल पीस) गुम्बद के पत्थर के आकार और घनत्व के आधार पर वैज्ञानिकों ने इसका वजन कम से कम 88 टन निर्धारित किया है। समस्त विश्व के वास्तुशिल्प वैज्ञानिकों के लिए आज भी यह पहेली अनसुलझी हुई है कि 88 टन के इस गुम्बद (कैप स्टोन) को 216 फुट ऊंचाई तक ले जाकर किस तकनीक से स्थापित किया गया? क्योंकि आज से एक हजार वर्ष पहले क्रेन या ऐसी किसी अन्य मशीन का अविष्कार नहीं हुआ था। हालांकि 88 टन के वजन को 66 मीटर की ऊंचाई तक उठा सकने की क्षमता वाली कोई क्रेन आज भी विश्व में नहीं बन सकी है।

उल्लेखनीय है कि एक हाथी का वजन 4 से 7 टन तक होता है। और आज भी किसी घायल या मृत हाथी को उठाने के लिए क्रेन का ही उपयोग किया जाता है। इसका दूसरा कोई विकल्प आज भी उपलब्ध नहीं हुआ है।

यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहरों की सूची में सम्मिलित किए गए बृहदीश्वर शिव मंदिर पर Discovery Channel द्वारा वृत्तचित्र के निर्माण के दौरान चैनल की टीम के साथ आई अंतरराष्ट्रीय वास्तुशिल्प विशेषज्ञों की एक टीम ने यह जानने का प्रयास भी किया कि क्या कुओं से पानी निकालने के लिए प्रयोग की जानेवाली पुली (गरारी) की ही भांति किसी पुली (गरारी) के द्वारा हाथियों की मदद से खींचकर इतने वजन को इतनी ऊंचाई तक ले जाया जा सकता है? इसके लिए उन्होंने बाकायदा प्रयास भी किया किन्तु पूरी तरह असफल हुए और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि हाथियों की मदद से इतने भारी पत्थर को इतनी ऊंचाई तक ले जा पाना असम्भव है। बृहदीश्वर शिव मंदिर का गुम्बद पूरे विश्व के वास्तुशिल्प वैज्ञानिकों के लिए अबूझ पहेली बना हुआ है। तंजावुर में पिछले एक हजार वर्षों से विश्व के सबसे भारी गुम्बद को अपने मस्तक पर सुशोभित कर गर्व के साथ बिना नींव के खड़ा हुआ बृहदीश्वर शिवमंदिर प्राचीन भारतीय वास्तुशिल्प विज्ञान की उस चमत्कारी गौरव गाथा का गान कर रहा है। जिसे सुनकर पूरा विश्व अचंभित और आश्चर्यचकित है।

अपने विशिष्ट वास्तुशिल्प के लिए चर्चित बृहदीश्वर शिव मंदिर का निर्माण 1,30,000 टन ग्रेनाइट से किया गया है। जबकि ग्रेनाइट इस इलाके के आसपास नहीं पाया जाता और आजतक यह बात स्पष्ट नहीं हो सकी है कि इतनी भारी मात्रा में ग्रेनाइट कहां से लाया गया। ग्रेनाइट की खदान मंदिर के सौ किलोमीटर की दूरी के क्षेत्र में नहीं है। इस शिव मंदिर से सम्बंधित आश्चर्यजनक तथ्य यह भी है कि ग्रेनाइट पर नक्का्शी करना अत्यन्त कठिन कार्य है। लेकिन चोल राजाओं ने इस मंदिर के ग्रेनाइट पत्थ्र पर अत्यन्त सूक्ष्म एवं उत्कृष्ट कोटि की नक्का शी का कार्य करवाया है।

यह हम भारतीयों का दुर्भाग्य है कि तंजावुर के इस शिवालय के चमत्कारी वास्तुशिल्प और सौन्दर्य के समक्ष अत्यन्त तुच्छ स्थिति वाले ताजमहल का गुणगान हम प्रचंड निर्लज्जता के साथ करने में व्यस्त रहे और आज भी व्यस्त हैं। लेकिन बृहदीश्वर शिवमंदिर सरीखी अपनी अतुलनीय धरोहर की चर्चा तक नहीं करते।




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