UPA-यूरिया भ्रष्टाचार: एवं मोदी सरकार

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UPA-यूरिया  भ्रष्टाचार: एवं मोदी सरकारBiggest Urea Scam in 2004-2014

कल प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी महोदय के भाषण में उन्होंने नीम कोटेड यूरिया एवं उसकी किसानों को हुई सुविधा के बारें मे कहा तो कुछ बातों का स्मरण होना स्वाभाविक था।


अटल सरकार को हराकर सन 2004 में सत्ता ये आने के पश्चात युपीए सरकार में दो महत्वपूर्ण निर्णय लिये गये। पहला यूरिया एवं डीएपी [diammonium phosphate (DAP)] की आयात की जाये; यह निर्णय आश्चर्यकारक इस कारण था क्योंकि भारत इन दोनों रसायनों का उत्पादन करने में स्वयं पूर्ण सक्षम था। दूसरा निर्णय उससे भी आश्चर्यकारक था, वो ये था कि आयात किये हुए खाद को सबसिडी देना। कुछ भारतीय कंपनीयों के बंद होने के पीछे इन दोनों निर्णयों का महत्वपूर्ण योगदान है।
इन दो निर्णयों के संयुक्त परिणामस्वरूप अटल सरकार के समय जो आयात केवल पॉटॅश तक सीमित था, उसे अब UPA सरकार ने यूरिया , अमोनिया, एवं डीएपी तक विस्तारित कर दिया था। सन 2004 में जब भारत में 10% खाद की आयात होती थी, वहीं 2012 तक आयात बढ़कर 44% तक पहुंच गयी। युपीए सरकार ने न केवल आयात को सबसिडीयुक्त कर दिया अपितु इन चीजों के पॅकिंग, मजदूरी, एवं यातायात को भी सबसिडी दी। इस आसमान को छूती आयात के साथ सब्सिडीयुक्त कींमतों ने वो कहर बरपाया कि भारतीय कंपनीयों की गतीविधियां ठहरी की ठहरी रह गयीं। युपीए की सोनिया सरकार के अगले 10 वर्षों के कार्यकाल में न तो किसी भारतीय कंपनी का उत्पादन बढ़ा न ही किसी नयी कंपनी को स्थापित किया गया।
सन 2008 के आर्थिक मंदी के दरम्यान इस आयात ने शिखर छू लिया और वह 45,000 करोड़ तक पहुंच गयी। इस तरह से भारत विश्व में यूरिया एवं डीएपी कि सबसे अधिक आयात करने वाला देश बन गया। देश को लूटना कोई काँग्रेस से सीखे। इन के सामने तो इनकी इटालियन मम्मी के इटालियन माफिया भी लज्जित हो जायें। अब आप विचार कर रहे होंगे कि इस कहानी के बीच अचानक भड़क उठने का क्या प्रयोजन है? तो वो यह है कि यह सारी आयात इंडियन पोटॅश लिमिटेड [Indian Potash Ltd.(IPL)] इस एकलौती कंपनी के माध्यम से किया जाता था। सही बात है, भ्रष्टाचार हमेशा केंद्रीकृत पद्धति से हो तो करने में सुविधा होती है। है न?
इंदिरा गांधी ने जब कहा था कि भ्रष्टाचार एक वैश्विक मामला है तब उस कथन का सत्य स्वरूप लोग तब समझ नहीं पाये थे। अंतरराष्ट्रीय बाजारों में हर चीज के व्यापार के पीछे गिरोह होते हैं, जो इस खाद के व्यापार के पीछे भी थे एवं हैं। इसी काल में डीएपी की कीमतें दो सौ डॉलर प्रति मीट्रिक टन से बढ़कर नौ सो डॉलर प्रति मीट्रिक टन तक पहुंच गयीं। बात साफ है कि यूरिया एवं डीएपी के आयात के विषय में खरीदारी से लेकर यातायात तक भ्रष्टाचार होता रहा।
जब सन 2014 में मोदी सरकार आयी, तब यूरिया को नीम कोटेड करने का निर्णय लिया गया जिससे कि यूरिया के खेती के अन्यथा उपयोग पर प्रतिबंध लग गया। इस वर्ष आयात में 49.88 लाख मीट्रिक टन से लेकर 49.83 मीट्रिक टन इतनी थोडी सी कमी आयी और कुल बचत हुयी 1.08 मिलियन डॉलर, घरेलू उत्पादन 177.84 लाख था।
अब आज की बात करें तो भारत में तीस यूरिया उत्पादन इकाईयां (युनिट) हैं जिनकी संयुक्त उत्पादन क्षमता 207.54 मीट्रिक टन जितनी है। आयात कम कर उत्पादन बढाने हेतू फर्टिलायझर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (FCIL) तथा हिंदूस्थान फर्टिलायझर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (HFCL) इन दो कंपनीयों के बंद पडे पांच ईकाईयों में पुन: उत्पादन आरंभ करने कि दिशा में मोदी सरकार प्रयासरत है। इतना ही नहीं, ब्रह्मपुत्रा व्हॅली फर्टिलायझर कॉर्पोरेशन लिमिटेड इस कंपनी में एक नया यूरिया प्लांट लगाने का भी निर्णय किया है जिसकी प्रतिवर्ष उत्पादन क्षमता होगी 8.646 लाख मीट्रिक टन।
मैं अनेक विषयों में मोदी सरकार की आलोचना करता आ रहा हूं। परंतु जिन विषयों मे प्रशंसा होनी चाहिए उन विषयों की जानकारी न होने के कारण एवं निर्णयों के परिणामों की कालावधी ज्ञात न होने के कारण मैं एवं सामान्यजनों को तत्काल प्रभाव से कुछ दिखाई नहीं देगा। इस कारण मेरा यह मानना है कि मोदी सरकार का 2019 में भारी बहुमत से चुना जाना न केवल आवश्यक है अपितु अनिवार्य भी है।
यदि आपने सारी पोस्ट पढ़ी है तो आपके अमूल्य समय के लिये आभार एवं लंबी पोस्ट के कारण क्षमाप्रार्थी।

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