11 दिसंबर एक महाकाव्य का जन्मदिवस...

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11 दिसंबर एक महाकाव्य का जन्मदिवस...
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"The Moment You Accept Yourself, You Become Beautiful"

ओशो या भगवान रजनीश या आचार्य रजनीश हमारे समय के सर्वाधिक महत्वपूर्ण और रहस्यमय व्यक्तित्व हैं।
मप्र के एक मामूली से कस्बे गाडरवाड़ा (जिला नरसिंहपुर) के सामान्य से कपड़ा व्यवसायी जैन साहब का ज्येष्ठ पुत्र जिसे उसकी नानी ने हर तरह की छूट देकर जिद्दी और विद्रोही बना दिया था। फिर ये बालक स्कूली शिक्षा की धज्जियाँ उड़ाता हुआ कॉलेज पहुँचा। इसी दौरान इसका सत्संग पास ही शक्कर नदी के उस पार एक फक्कड़ संत पागल बाबा और उनके शिष्य मस्तो से होने लगा।
इसकी बचपन की प्रेयसी गुड़िया ने जब इसकी बाँहों में दम तोड़ा तब मृत्यु से इसे विशेष प्रयोजन हो गया। साधक रजनीश का प्रादुर्भाव हुआ 17वें साल में।
21 वर्ष की आयु में रजनीश अपने भीतर उस सत्य को जान गया जिसे पूर्व जन्म में जानने से जरा पीछे रह गया था। रात रात भर मौलश्री वृक्ष के नीचे ध्यान और दिन भर अध्ययन से रजनीश का बाह्य स्वरूप विक्षिप्त सा दिखने लगा।तब वह जबलपुर में दर्शनशास्त्र का विद्यार्थी था।
किंतु स्नातकोत्तर डिग्री में विश्वविद्यालय स्तर पर टॉप करके गोल्ड मैडल पानेवाले को अब विक्षिप्त कैसे कहो???
अब रजनीश अपनी आध्यात्म संपदा अपने भीतर रखे प्रोफेसर के पद पर कार्य करने लगे। कॉलेज में वे आचार्य रजनीश नाम से लोकप्रिय हो गए।
9 साल प्रोफेसरी करके रजनीश ने आचार्य रजनीश नाम से देश भर में घूमकर भारतीय अध्यात्म और ध्यान जैसे गूढ़ विषयों को सहज सरल रोचक शैली में जनसामान्य के आगे रखना आरंभ किया।
आचार्य रजनीश जल्द ही छा गए क्योंकि ढोंगानंद पोंगानंदों के पास उनके तर्कों की काट नहीं थी, न किसी का इतना अध्ययन था। बस गादियाँ थीं और गधे जमे थे।
आचार्य रजनीश ने अब अपनी विचित्र ध्यान प्रणालियों का सूत्रपात किया....सक्रिय ध्यान। ये आइडिया उन्हें पागल बाबा से ही मिला होगा क्योंकि सिद्ध मार्ग में ये सब स्वतः होने वाले साधन के अंग हैं। इसपर कभी उन्होने प्रकाश नहीं डाला कि वे किसी सिद्ध के शिष्य हैं।गुरु के बिना स्वतः ही सिद्ध होने के उनके दावे पर सदा संदेह रहा है।
इसी समय में अपनी सबसे विवादास्पद प्रवचनमाला "संभोग से समाधि की ओर" से वे विख्यात से कुख्यात हो गए। तमाम पारंपरिक संप्रदाय और पहले से जले भुने साधु संत अब खुलकर विरोध में आ गए।
विरोधी रजनीश के प्रचारक रहे हैं।ठीक मोदीजी की तरह। आचार्य रजनीश का नाम आग की तरह फैल गया और देश की सीमाओं से परे चला गया।
इसी समय विदेशी हिप्पियों के साथ कुछ सत्य के खोजी उन तक पहुँचे। अब आचार्यजी ने नवसंन्यास का सूत्रपात किया।घर गृहस्थी में नौकरी धंधे बाजार में बैठे लोगों को भगवा वस्त्र और माला पहनाकर संन्यासी बना दिया।
पारंपरिक संन्यासी बहुत नाराज हुए और आचार्य रजनीश ने स्वयं को भगवान घोषित कर दिया।
उसके पीछे तर्क ये था कि "मैं अपने भीतर की भगवत्ता को जान गया हूँ।तुम भी जानो और भगवान हो जाओ।"
अब भगवान रजनीश पूना में एक अंतरराष्ट्रीय आश्रम से अपनी गतिविधियाँ चलाने लगे।
भगवान वाला समय उनका स्वर्णकाल कहा जा सकता है।क्योंकि इसी समय भारत के मध्ययुगीन संत साहित्य की धूल झाड़कर उसे अभिजात्य वर्ग के पुस्तकालयों तक पहुँचाने का ईश्वरीय कृत्य उनसे संपन्न हुआ।
यदि भगवान रजनीश न होते तो हममें से कितने लोग दयाबाई, सहजोबाई, चरणदास, भीखा, रज्जबदास, लाल, गुलाल, दूलन सहित कबीर, गोरख, नानक और आदिशंकराचार्य को पढ़ते???
भगवान के शरीर को रोग लगे तो भक्तों ने अमेरिका की फ्लाइट पकड़ाई। इलाज कराते कराते अमेरिका ऐसा भाया कि मय दानव के राज्य में भगवान ने 10000 एकड़ की माया का राज कायम कर दिया। जी हाँ दस हजार एकड़। वो भी बिना ईसाईयत या अमेरिकी सरकार की चमचागिरी किए।
तब के राष्ट्रपति रोनॉल्ड रीगन को ये खटक गया।
भगवान मौन हो गए। अमेरिकी यूरोपीय भक्तों की तादाद सैलाब की तरह उमड़ रही थी।चर्च सूने पड़े थे।
अब लोग रविवार को भी नहीं जाते थे।
उनके तर्क विचित्र थे, "God is there in Oregon Rajneesh puram, why to go Church???"
इधर शीला नामक एक चेली भगवान की नाक के नीचे गेम खेल रही थी और उधर भगवान ने एक और धमाका किया।
रीगन सरकार ने प्रतिष्ठित कार कंपनी Roles Royce को रिजेक्शन दे दिया। बहुत बड़ी और मँहगी कारें बनाने के कारण अमेरिकी सरकार में उन कारों का उपयोग बंद कर दिया। बेचारा रॉल्स रॉयस वाला बहुत रोया पर रीगन ना पिघला।रॉल्स रॉयस सरकार के दम पर ही चल रही थी। कंपनी बंद होने की नौबत आ गई। तभी किसी ने उसे भगवान रजनीश का द्वार दिखाया।
भक्त के अश्रुओं से पिघले भगवान ने तत्काल अपने आश्रम के लिए ९४ रॉल्स रॉयस ऑर्डर करा दीं।
मरती हुई कंपनी जीवित हो गई।
रीगन ने इसे personally ले लिया।
तभी एक दिन....... वेटिकन से एक पत्र गोपनीय रूप से रीगन के ऑफिस में आया। पोप के असिस्टेंट बिशप ने लिखा था, "Stop this man, Bhagwan Rajneesh, anyhow. If necessary, kill him. If he lives just for 10 years, there will be no Christianity on the earth."
लेविंस्की क्लिंटन कांड के समय Ovel House office से एक कर्मचारी को ये पत्र मिला था। पर फिर आश्चर्यजनक रूप से विलुप्त भी हो गया और वह व्यक्ति भूल ही गया कि ऐसा कुछ हुआ था।
पत्र पाते ही रीगन प्रशासन हरकत में आया और शीला के माध्यम से भगवान पर शिकंजा कसा गया। झूठे १२५ केस लगाए और गिरफ्तार किया। जेल में ही थीलियम नामक धीमा जहर दिया गया और घातक रेडिएशन डाले गए।
१२ दिन बाद जमानत हुई तो अमेरिका छोड़ने के फरमान सहित।
भगवान विश्व भ्रमण पर निकले। 121 देशों ने अपने यहाँ उतरने नहीं दिया। घबरा गए थे सब।
अंततः लौट कर बुद्ध घर को आए....।
अंतिम वर्ष में भगवान संबोधन त्यागा और मात्र "ओशो" के रूप में पहचाने जाने की इच्छा की।
ओशो का अर्थ है "चेतना के बहुआयामी विस्तार को नमन।"
"विलियम जेम्स" का शब्द है "ओशनिक एक्सपीरियंस" ओशो का कहना था वो अनुभव की बात है। अनुभोक्ता को हम ओशो कहेंगे।
आदमी कोई भी संपूर्ण नहीं होता।गलतियाँ भी हैं। कमियाँ भी हैं।दोष भी हैं।
पर......... इस युग की अभिव्यक्ति भी है। १५ लाख से अधिक किताबें पढ़ने वाले चलित पुस्तकालय को हम ओशो रजनीश नाम से जानते हैं।

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