खण्डन - मनुस्मृति दलित विरोधी

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खण्डन - मनुस्मृति दलित विरोधी
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Manusmriti is not against dalit or shudra

मनुस्मृति दहन अभी हाल ही में किया गया, मनुस्मृति के दहन का जो आधार था वो ये था कि मनुस्मृति ने जातिवादिता को जन्म दिया या यूं कह ले कि मनुस्मृति ही दलितों पर किये जुल्म ज्यादतियों के लिए जिम्मेदार है लेकिन क्या वाकई मनुस्मृति जिम्मेदार है या जिम्मेदार है अम्बेडकर का लिखित संविधान जिसने लोगों को जातियों में तोड़ा उनमे मतभेद किये, जलाया किसे जाना चाहिए निर्णय आपका।
आइये खंडन शुरू करते है --
दलितों और लगभग सभी लोगो को पता होना चहिये की मनु ने मनुस्मृति की रचना की और मनु की ही हम संतान हैं इसलिए हमें एक नाम - "मानव" भी कहा जाता है। अब एक व्यवहारिक प्रश्न की आप के चार बच्चे हो तो आप क्या अपने किसी एक बच्चे को सभी अधिकार दे दोगे और एक बच्चे को अछूत बना दोगे?
जाहिर है आपका जवाब नही ही होगा फिर मनु जो दिव्य थे प्रथम थे निर्णय लेने में सक्षम थे वो ऐसा करेंगे ये सोचना ही मूर्खता है।
पहले देखते हैं कि शुद्र थे कौन --
आइये देखते हैं --
मनुस्मृति -
शुचिरुत्कृष्टशुश्रूषूर्मृदुवागनहंकृत: |
ब्राह्मणद्याश्रयो नित्यमुत्कृष्टां जातिमश्नुते || 9/335 ||
भावार्थ – शुद्ध-पवित्र, अपने से उत्कृष्ट वर्ण वालों की सेवा करने वाला, मधुरभाषी, अहंकार से रहित, सदा ब्राह्मण आदि तीनों वर्णों की सेवा में संलग्न शूद्र भी उत्तम ब्रह्मजन्म के अतंर्गत दूसरे वर्ण को प्राप्त कर लेता है।
ब्रह्मजन्म से अभिप्राय शिक्षित होने से है। शिक्षित होने को दूसरा जन्म भी कहा गया है।
ज्यादा सपष्ट करने के लिए ऋग्वेद के ये श्लोक देखेँ --
ब्राह्मण: क्षत्रियो वैश्यस्त्रयो वर्णा द्विजातय: |
चतुर्थ एकजातिस्तु शूद्रो नास्ति तु पंचम: || 10/4 ||
भावार्थ – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ये तीन वर्ण विद्याध्य यन रूपी दूसरा जन्म प्राप्त करने वाले हैं, अत: द्विज कहलाते हैं. चौथा विद्याध्यदयन रूपी दूसरा जन्म (द्विजजन्म) न होने के कारण एकजाति या एक जन्म वाला ब्रह्मजन्म से रहित शूद्र वर्ण है। पांचवां कोई वर्ण नहीं है।
निष्कर्ष -- ज्ञान प्राप्त करना (पढ़ना-लिखना) दूसरा जन्म है। दूसरा जन्म नहीं पाने वाला अर्थात जो पढ़ता-लिखता नहीं है, ज्ञान अर्जित नहीं कर पाता है, वह शूद्र है। बहुत सरल-सी बात है, जो ज्ञान अर्जित कर पाने में अक्षम हैं वे शूद्र हैं। ऐसा नहीं है कि शूद्र, ज्ञान अर्जित नहीं कर सकते। मनु के श्लोक से साफ है कि यदि सेवा में लगा शूद्र ब्रह्मजन्म ले ले, मतलब पढ़ लिखकर ज्ञान हासिल कर ले, तो वह दूसरे वर्ण का अधिकारी हो सकता है।
शुद्रो को अधिकार -
अब इसपे कुछ महाज्ञानी ये कुतर्क ले आते है कि शुद्रों को कोई अधिकार ही नही है तो वेदाध्ययन कैसे करें, तो उन्हें ये देखना चाहिए --
यथेमां वाचं कल्याणीमावदानि जनेभ्य। ( यजुर्वेद 26.2 )
ब्रह्मराजन्याभ्यां शूद्राय चार्याय स्वाय चारणाय।।
अर्थात -
" हे मनुष्यों ! मैं ईश्वर जैसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और स्त्री, सेवक आदि और उत्तम लक्षणयुक्य प्राप्त अन्त्यज के लिए वेदरूप वाणी का उपदेश करता हूँ, वैसे आप लोग भी अच्छी प्रकार उपदेश करो।
मतलब पढ़ लिख लेने पर क्या शुद्र, ब्राम्हण और ब्राम्हण कुल में जन्म लेने वाला अनपढ़ रहने पर शुद्र हो जाता क्या वर्ण बदला जा सकता है --
शुद्रों ब्राह्मणतामेति ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम।
क्षत्रियाज्जातमेवं तु विद्याद्वैश्यात्तथैव च। (10/65)
अर्थात -
महर्षि मनु कहते हैं कि कर्म के अनुसार ब्राह्मण शूद्रता को प्राप्त हो जाता है और शूद्र ब्राह्मणत्व को। इसी प्रकार क्षत्रिय और वैश्य से उत्पन्न संतान भी अन्य वर्णों को प्राप्त हो जाया करती हैं। विद्या और योग्यता के अनुसार सभी वर्णों की संतानें अन्य वर्ण में जा सकती हैं।
मनुस्मृति में वर्ण परिवर्तन के उदाहरण भी दिए है --
शनकैस्तु क्रियालोपदिनाः क्षत्रिय जातयः।
वृषलत्वं गता लोके ब्राह्मणा दर्शनेन च॥
पौण्ड्रकाशचौण्ड्रद्रविडाः काम्बोजाः भवनाः शकाः।
पारदाः पहल्वाश्चीनाः किरताः दरदाः खशाः॥-मनुसंहिता (1- (/43-44)
अर्थात ब्राह्मणत्व की उपलब्धि को प्राप्त न होने के कारण उस क्रिया का लोप होने से पोण्ड्र, चौण्ड्र, द्रविड़ काम्बोज, भवन, शक, पारद, पहल्व, चीनी किरात, दरद व खश ये सभी क्षत्रिय जातियां धीरे-धीरे शूद्रत्व को प्राप्त हो गयीं।
मनुस्मृति की वर्ण व्यवस्था जन्म से ही कोई वर्ण नहीं मानती सभी को शुद्र (अनपढ़) मानती है। मनुस्मृति के अनुसार माता-पिता को बच्चों के बाल्यकाल में ही उनकी रूचि और प्रवृत्ति को पहचान कर ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य वर्ण का ज्ञान और प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए भेज देना चाहिए, जो अनपढ़ होते है वो शुद्र कहे जाते है उपरोक्त श्लोक से सिद्ध कर चुका हूँ।
मनु काल मे शुद्रो की स्थिति --
महाभारत काल मे राजा पैजवन शूद्र था। राजा सुदास भी शुद्र राजा था दोनों ने दस राजाओं से युद्ध किया। महाभारत में शूद्रों की सेना का उल्लेख अंबष्ठों, शिवियों, शूरसेनों आदि के साथ हुआ है।
राजा सल्हेश को मधुबनी जनपदों में सर्वजातीय श्रद्धा एवं प्रतिष्ठा प्राप्त है शुद्र ही थे वो जिनकी आज भी पूजा होती है। स्थिति शुद्रो की बिगड़ी बाह्य आक्रमण से मुग़लो के तुर्को के अतिक्रमण से और बदतर हुई ब्रिटिश शासन में इसके लिए जल्द ही एक खण्डन लिखूंगा।
मतलब साफ है मनुकाल में या मनुस्मृति कहीं भी शुद्रों को उनके अधिकारों से वंचित नही करती है अपितु अधिकारी बनाती है, अनपढ़ और अशिक्षित तब भी हेय थे आज भी है।
अंतिम निष्कर्ष -- मनुस्मृति शुद्रों को अधिकार देती है उन्हें वंचित नही करती जैसे हम अपने बच्चों में भेदभाव नही करते लेकिन योग्य को ही जिम्मेदार बनाते है जो कर्म से श्रेष्ठ है उसे तब भी ऊपर रखा जाता था और आज भी रखा जाता है। यदि आप मानते हैं कि एक अनपढ़ को भी वही अधिकार है जो एक पढ़े लिखे को और आपकी मानसिकता ये कहती है कि अनपढ़ और अयोग्य व्यक्ति को भी वही अधिकार मिलना चाहिए जो एक योग्य और पढ़े लिखे को मिल रहा है, जो मान सम्मान एक वैज्ञानिक को मिल रहा है वही मान सम्मान एक अनपढ़ को भी मिलना चाहिए तो बेशक आप मनुस्मृति जलाए आपको हक़ है क्योंकि समाज मे ऐसा काम सिर्फ पागल करते हैं और पागलों की बात का कोई बुरा नही मानता हाँ इलाज जरूर किया जाता है।
विशेष -- सभी के लिए मनुस्मृति अधिकारों की ही बात करती है एक आरोप लोग लगाते है कि दलित विरोधी (सिर्फ आरोप है सत्यता नही) होने के साथ महिला विरोधी भी है उन्हें ये जरूर पढ़ना चाहिए --
मनुस्मृति के अध्याय 3, श्लोक 56-60 तक महिलाओ के अधिकार और सम्मान के लिए कहा गया है उनमें से एक निम्न देखें --
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।।56।।
यत्र तु नार्यः पूज्यन्ते तत्र देवताः रमन्ते, यत्र तु एताः न पूज्यन्ते तत्र सर्वाः क्रियाः अफलाः (भवन्ति)।
अर्थात -
जहां स्त्रीजाति का आदर-सम्मान होता है, उनकी आवश्यकताओं-अपेक्षाओं की पूर्ति होती है, उस स्थान, समाज, तथा परिवार पर देवतागण प्रसन्न रहते हैं । जहां ऐसा नहीं होता और उनके प्रति तिरस्कारमय व्यवहार किया जाता है, वहां देवकृपा नहीं रहती है और वहां संपन्न किये गये कार्य सफल नहीं होते हैं ।
मनुस्मृति न दलित विरोधी है ना महिला विरोधी लेकिन मनुस्मृति जलाने वाले जरूर मानवता विरोधी है जो अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा के लिए तब भी लड़ाया और आज भी लड़ा रहे हैं मनुस्मृति जलाने के पहले पढ़ लें आपको पढ़ने के बाद जलाने वालों का आप खुद विरोध करेंगे।
।। क्रिया पर प्रतिक्रिया प्रकृति का नियम है ।।

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