जिहादी लॉफेयर! जानते हैं क्या है?
इसमें इस्लाम की किसी भी तरह की आलोचना को नस्लवाद और भेदभाव के समकक्ष माना गया, ये हमें कहां ले जा रहा है? अब अगर आपके मुहल्ले में कोई बम फोड़ दे तो आप इसे जिहाद या इस्लामी आतंकवाद नहीं कह सकते। ऐसा कहना इस्लाम की बेईज्जती होगी! इसलिए सतर्क रहें। अगर कल को आप के मुंह से कोई ऐसा शब्द निकल गया और आप मारे गए तो कानूनी तौर पर भी माना जा सकता है कि सबसे बड़े आतंकवादी आप खुद हैं?
Adarsh Singh | Updated on:15 Dec 2017 8:17 PM IST
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इसमें इस्लाम की किसी भी तरह की आलोचना को नस्लवाद और भेदभाव के समकक्ष माना गया, ये हमें कहां ले जा रहा है? अब अगर आपके मुहल्ले में कोई बम फोड़ दे तो आप इसे जिहाद या इस्लामी आतंकवाद नहीं कह सकते। ऐसा कहना इस्लाम की बेईज्जती होगी! इसलिए सतर्क रहें। अगर कल को आप के मुंह से कोई ऐसा शब्द निकल गया और आप मारे गए तो कानूनी तौर पर भी माना जा सकता है कि सबसे बड़े आतंकवादी आप खुद हैं?
जिहादी लॉफेयर! जानते हैं क्या है?कुछ लोग समझते हैं कि इधर साल दो साल से हमारे शहरों में बम नहीं फूट रहे हैं तो इसका मतलब यही हुआ कि जिहाद की लौ मद्धिम पड़ने लगी है। राष्ट्रवादी कहेंगे मोदी का कमाल है, तो लाल वाले कहेंगे कि जिहाद कहां था, वो तो पथ से भटके गरीब युवा कभीकभार बम फोड़ देते हैं। उन्हें सरकारी नौकरी दे दो काम खत्म। हरे वालों का हाल तो निराला है। टीवी वाले मुल्ले आजकल इस कदर देशभक्त हुए जा रहे हैं कि असली भक्तों को उनकी बराबरी में पसीने छूटने लगे हैं। वो एक सांस में शरिया और सेक्यूलरिज्म दोनों की वकालत कर लेते हैं और आरएसएस को दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी संगठन बता देते हैं। सपाई, माकपाई इस पर लहालोट हो जाते हैं।
लेकिन जिहाद एक सेकेंड को भी नहीं रुका है और न रुकेगा। यह हजार तरीकों से जारी है। सेक्यूलरिज्म की दुहाई देते-देते शरिया के फायदे गिना देना भी जिहाद है। वोट और पोलिटिकल करेक्टनेस के चलते कोई उनकी बात नहीं काटेगा सिवाय भाजपा के और वह तो सर्टिफाइड सांप्रदायिक पार्टी घोषित है ही। सिविल ड्रेस में संविधान की दुहाई देने वाले ये मुल्ले जो कर रहे हैं, उसे कहते हैं- लॉफेयर। यानी अदालती जिहाद। मुकदमेबाजी करके इस्लाम के हितों को बढ़ाना व उनके लिए विशेष सुविधाएं जुटाना। तो पीएफआई का एक नेता सीने पर तिरंगे का बिल्ला लगा कर संविधान और धर्मनिरपेक्षता के जयकारे लगाता है और स्टिंग आपरेशन में कहते पकड़ा जाता है- हमारा मकसद पूरे भारत को इस्लामी देश बनाना है। वही व्यक्ति लव जिहाद की शिकार अखिला को हादिया साबित करने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाता है और हादिया के मुंह से अदालत में कहलवा लेता है कि, "मुझे मेरी आजादी और मेरा मजहब चाहिए "।
लॉफेयर की यह विषबेल इतनी पुष्पित पल्लवित हो चुकी है कि इस्लाम के खिलाफ एक शब्द को भी रसूल की तौहीन और ईशनिंदा (ब्लासफेमी) करार देने की तैयारी की जा चुकी है। अकादमिक जगत, अखबार व पत्रकार और इस्लाम के प्रति आलोचनात्मक रुख रखने वाले राजनेता सभी इनके निशाने पर हैं। इस्लाम की थोड़ी भी आलोचना होने पर ये लॉफेयर जिहादी अदालत दौड़ पड़ते हैं और मानहानि का मुकदमा ठोक देते हैं। मानवाधिकार संगठनों, नस्लभेद के खिलाफ जंग लड़ रहे संगठन और सर्व धर्म समभाव के समझदार पैरोकार इनके पीछे डट जाते हैं।
इसे खेल का सबसे बड़ा खिलाड़ी था एक सऊदी अरबपति और उसामा बिन लादेन का रिश्तेदार खालिद बिन महफूज। उसने अकेले इंग्लैंड की अदालतों में ही 30 से ज्यादा लेखकों और प्रकाशकों के खिलाफ मुकदमे किए। महफूज ने 2007 में रॉबर्ट कॉलिंस और जे. मिलार्ड बर्र की किताब Alms for Jihad (जिहाद के लिए भीख या चंदा) के प्रकाशन को लेकर कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस के खिलाफ मुकदमे की धमकी दी। कैब्रिज ने तुरंत घुटने टेक दिए। सार्वजनिक रूप से माफी मांगी और सभी अनिबकी प्रतियों को जला देने का वादा किया। हद तो तब हो गई जब उसने दुनिया की सभी लाइब्रेरियों ये मांग की कि इस किताब को वे अपनी लाइब्रेरी से हटा दें। इसे कहते हैं खौफ। महफूज हर जिहादी संगठन को और वर्ल्ड ट्रेड टावरों तक पर हमला करने वालों को मनीआर्डर भेजता रहा और जिसने भी आरोप लगाया उस पर मरते दम तक मुकदमा ठोकता रहा देता। वह 2009 में अल्ला को प्यारा हुआ।
जिहादी लॉफेयर यहीं नहीं रुकता। नीदरलैंड की दक्षिणपंथी फ्रीडम पार्टी के संस्थापक और फिल्म मेकर गीर्ट वाइल्डर्स घोर संकट में हैं । उनकी डाक्यूमेंट्री "फितना" को लेकर जार्डन ने नीदरलैंड से उनके प्रत्यर्पण का अनुरोध किया है और उन पर शरिया कानून के तहत मुकदमा चलाने की मांग की है। जबकि इस डाक्यूमेंटरी में सिर्फ कुरान की आयतें हैं और मस्जिदों में काफिरों के कत्ल का फरमान सुनाते मुल्लों के भाषण हैं। वाइल्डर्स अब राजनयिक पासपोर्ट के बिना नीदरलैंड के बाहर पांव नहीं रख पाते। नीदरलैंड को डर है कि उन्हें किसी इस्लामी देश में गिरफ्तार किया जा सकता है। यह आशंका भी है कि इस्लामी देश लाबिंग करके कहीं वाइल्डर्स के खिलाफ इंटरपोल से गिरफ्तारी वारंट न जारी करा दें।
वाइल्डर्स का मामला बस इससे भी बड़े खेल की शुरुआत है। मुसलिम देशों का संगठन आर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोआपरेशन (ओआइसी) अब संयुक्त राष्ट्र के जरिए हर उस चीज पर पाबंदी लगवाने की फिराक में है जिसे वो इस्लाम के खिलाफ मानते हैं।
2007 में पाकिस्तान में इस्लामी देशों के विदेश मंत्रियों ने बढ़ती इस्लामोफोबिया पर चिंता जताते हुए इस्लाम की छवि खराब करने की सभी साजिशों के सशक्त प्रतिरोध का संकल्प लिया। यह संकल्प भी पूरा हो गया जब अगले ही साल संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने 7/19 प्रस्ताव पास किया जिसमें मानवाधिकारों को ही शीर्षासन करा दिया गया है। इसमें इस्लाम की किसी भी तरह की आलोचना को नस्लवाद और भेदभाव के समकक्ष माना गया और सभी देशों से अनुरोध किया गया है कि वे इस भेदभाव को दूर करने के लिए कानूनी कदम उठाएं। प्रस्ताव में इस्लाम को आतंकवाद, हिंसा और मानवाधिकारों के हनन के साथ जोड़ने पर चिंता जताई गई। साथ ही शरिया कानून पर किसी तरह की आलोचनात्मक बहस को भी इस्लामोफोबिया माना जाएगा। पूरी दुनिया को धार्मिक सहिष्णुता का संदेश देने वाले इस प्रस्ताव पर सऊदी अरब, पाकिस्तान व तमाम इस्लामी देशों के अलावा चीन ने भी दस्तखत किया है।
ये हमें कहां ले जा रहा है? अब अगर आपके मुहल्ले में कोई बम फोड़ दे तो आप इसे जिहाद या इस्लामी आतंकवाद नहीं कह सकते। ऐसा कहना इस्लाम की बेईज्जती होगी। और इस्लाम की बेहुरमती करना सबसे बड़ा आतंकवाद है। डेनमार्क की पत्रिका में मोहम्मद पर छपे कार्टूनों के विरोध में इस्लामाबाद में डेनिस दूतावास पर हमले को जायज ठहराते हुए नार्वे में पाकिस्तानी राजदूत ने कहा था- सबसे बड़ा आतंकवाद तो हमारे रसूल की बेइज्जती है।
इसलिए सतर्क रहें। अगर कल को आप के मुंह से कोई ऐसा शब्द निकल गया और आप मारे गए तो कानूनी तौर पर भी माना जा सकता है कि सबसे बड़े आतंकवादी आप खुद हैं। अमेरिका हथियार वाली जंग जीत कर इतनी उपलब्धियां नहीं हासिल कर पाया जितना लॉफेयर के धुरंधरों ने कर ली है। कुछ सीख मिली क्या?