कुछ मासूम से प्रश्न ??

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कुछ मासूम से प्रश्न ??
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मासूम से प्रश्न

आज से 5-7 साल बाद जब कभी अपने विचित्र नेतृत्व में 200 चुनाव हारने के बाद राहुल गांधी जब कोई चुनाव जीत जाएंगे तो क्रेडिट उनके नेतृत्व को दिया जाना उचित होगा कि चुनाव हारने के उनके विराट प्रागैतिहासिक अनुभव को ??
साथ ही आज यह भी एक प्रश्न है कि क्या सचमुच
" कोशिश करने वालो की कभी हार नही होती "
यह कविता कुछ विशेष मनुष्यो पर लागू नही होती ??
एक बात और कि आखिर क्या किसी दिन स्वयं भाजपा ही राहुल गांधी जी को इस जबरदस्त योद्धा स्वरूप के चलते "भारत रत्न " ना दे दे कि यह व्यक्ति इतनी जिल्लत ,इतनी लगातार हारें भुगतकर कर भी अगली लड़ाई उसी आत्मविश्वास और ऊर्जा के साथ लड़ने प्रस्तुत हो जाता है ?
एक बात और कि आखिर कैसे अपनी करनी का फल आपकी कितनी पीढ़ियों तक को भुगतना पढ सकता है इसका बेहतरीन उदाहरण नही है कांग्रेस की लगातार हार ?
बहरहाल ! कुछ भी कहिये सच यही है कि राहुल गांधी एक सख्सियत के रूप में भारतीय राजनीति मे सदा के लिए एक आर्टिकल के रुप अवश्य स्मरण किये जायेंगे ।
चुनाव हारने की जिम्मेदारी लेते समय उनका नटखट चेहरा जैसे छोटा भीम के एक एपिसोड के अंत का क्षणिक विषाद और फिर अगले ही पल फिर से नए एपिसोड को लेकर उनका वही शाश्वत उत्साह !
वाह !
वे धन्य है निश्चित ही !
और उतने ही धन्य है उनके प्रवक्ता जो लगातार 28 हार के 2800 अन्य कारण गिना देंगे लेकिन राहुल बाबा तक नाकामी की बदनामी की आंच नही आने देंगे ! इतने बहाने तो ट्रांस्पोर्टरों तक के पास नही होते जितने कांग्रेसी प्रवक्ताओं के पास होते है , हालात तो यहां तक है की राहुल स्वयं जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ले तो भी ये नही मानते की हार का कारण राहुल का अविकसित ,अनुपजाऊ नेतृत्व है ।ये तैयार बैठे रहते हैं सरासर झूठ बोलकर जनता के सामने विलेन बनकर भी कुर्बान हो जाने के लिए बस राहुल बाबा एक बार देख भर लें की उनके इन शाब्दिक बाजीगरों ने कैसे न्यूज़ चैंनलों पर रंगीन कागजो कों कबूतरो मे बदला है !
गुजरात संघर्ष कांग्रेस के बुझते दिए कि अंतिम झिलमिलाती लौ है , अलविदा कांग्रेस !

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