अदालती लड़ाई में विवादास्पद हो गया है रसगुल्ले का इतिहास
ओडिशा सरकार को झटका देते हुए पश्चिम बंगाल सरकार ने रसगुल्ले का जिओ टैग अपने नाम कर लिया है
Dr Anil Verma | Updated on:21 Nov 2017 7:25 PM IST
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ओडिशा सरकार को झटका देते हुए पश्चिम बंगाल सरकार ने रसगुल्ले का जिओ टैग अपने नाम कर लिया है
पहले मंदिर बना या नहीं जैसे विवादों ने समाज के कई हिस्सों में कड़वाहट घोली है. अब देश की लोकप्रिय मिठाई रसगुल्ले ने दो राज्यों के बीच कानूनी जंग करवा दी. रसगुल्ला बंगाल का है या ओडिशा का, इस बात पर बंगाल और ओडिशा सरकार में लड़ाई चल रही थी. अब फैसला आया है कि रसगुल्ला बंगाल की मिठाई है. हालांकि बंगाल को रसगुल्ले का जिआई (ज्योग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स रजिस्ट्रेशन) टैग मिल गया हो मगर ये फैसला बंगाल सरकार की बनाई कमेटी ने दिया है. इसलिए इसको निष्पक्ष फैसला मानना थोड़ा मुश्किल है.
गंभीर मुद्दा है रसगुल्ले का मूल तलाशना
सबसे पहले एक बात समझिए किसी भी जगह की पहचान से जुड़ी खाने-पीने संस्कृति के प्रतीकों का बड़ा महत्व है. कल को अगर अमेरिका कहे कि डोसा-सांभर न्यूयॉर्क की पहचान वाला खाना है तो हर हिंदुस्तानी बोलेगा कि ऐसा कैसे भाई? इसी तरह से मक्के की रोटी, सरसों का साग को गोवा स्पेशल करके दुनिया में पेश नहीं किया जा सकता. तो दुनिया भर के फूड फेस्टिवल, कल्चर इवेंट और दूसरी जगहों पर रसगुल्ले को पेश करने का एकाधिकार बंगाल को मिल जाएगा.
तो किसका है रसगुल्ला
आज रॉसोगुल्ला को बंगाल की अप्रतिम पहचान मान लिया गया हो मगर बंगाल में इसका प्राचीन इतिहास नहीं मिलता है. नवीन चंद्र दास को खाने-पीने की दुनिया में रसगुल्ला का वास्कोडिगामा कह कर प्रचारित किया जाता है. मिठाई की दुकान वाले दास बाबू के खाते में ही रसगुल्ला को दुनिया के सामने लाने का श्रेय है. आज भी बंगाल में केसी दास एंड सन्स नाम से दास परिवार की प्रसिद्ध रसगुल्ला चेन है.
मगर दास बाबू की इस उपलब्धियों में एक पेंच है. फूड हिस्टोरियन पुष्पेश पंत बताते हैं कि उस जमाने में अविभाजित बंगाल था. आज जिसे ओडिशा कहा जाता है वो तत्कालीन बंगाल का ही हिस्सा था. तब कोलकाता की दुकानों के मालिक बंगाल के होते थे मगर ज्यादातर कारीगर ओडिशा से ही आते थे. ऐसे में ये स्पष्ट नहीं कहा जा सकता है कि नवीन चंद्र दास की दुकान पर बिका संसार का पहला रसगुल्ला खुद उन्होंने बनाया था या उनके उड़िया कारीगर ने. इसके अलावा रसगुल्ले पर दास परिवार का कोई पेटेंट नहीं है. इस मिठाई को देश ने अपनाया और अपने-अपने तरीके से मॉडिफाई किया. हो सकता है कि आज आपको दास परिवार की जगह किसी दूसरी दुकान के रसगुल्ले स्वादिष्ट लगें.
क्या है ओडिशा का पक्ष
ओडिशा का कहना है कि उनके यहां दिया जाने वाला खीर मोहन ही पुर्तगाली प्रभाव के बाद रसगुल्ले की शक्ल में विकसित हुआ. ओडिशा का कहना है कि रसगुल्ला अपने पूर्ववर्ती स्वरूप में सदियों से मौजूद रहा है. और रथयात्रा के इतिहास में भी कम से कम तीन सौ सालों से मौजूद है. जबकि बंगाल का रसगुल्ला 150 साल से ही प्रचलित हुआ है. इसलिए जब बंगाल ने रसगुल्ले पर दावा ठोंका तो ओडिशा सरकार के मंत्री प्रदीप कुमार पाणिग्रही ने इसके खिलाफ दावा कर दिया.
फिलहाल रसगुल्ले की शुरुआत कहीं सी हुई हो एक बात तय है कि समय-समय पर इसका मजा लेना चाहिए.