भारत - इज़राइल संबन्ध और मोदी

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भारत - इज़राइल संबन्ध और मोदी
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भारत और इज़राइल सदियों के हमसफर

आज इज़राइल और भारत के बीच की दोस्ती और व्यापार के बारे में लोग बतियाते फूले नहीं समा रहे है। लेकिन मोदी इज़राइल के सगे नहीं है, इस का लोगों को ज्ञान नहीं है!


मोदी ने जो दो बातें इज़राइल के विरुद्ध की है उन में से एक तो बेंजामिन नेतन्याहू ने खुद ख़ारिज कर दी - संयुक्त राष्ट्र में भारत ने उस प्रस्ताव का अनुमोदन किया जिस में अमरीका ने यरूशलेम को इज़राइल का हिस्सा मान कर अपना दूतावास वहां बनाने का निर्णय लेने पर उस की निंदा की गई है। नेतान्याहू ने कहा कि यह कोई नाराज होनेवाली बात नहीं है, एक प्रस्ताव पर एक वोट मायने नहीं रखता, दोस्ती बनी रहेगी!
पर दूसरी बात की चर्चा कहीं हो नहीं रही। शायद उस बात की किसी को भनक भी नहीं है।
कुछ सप्ताह पहले भारत ने इज़राइल के राफेल नामक रक्षा सामान के उत्पादक के साथ टैंक भेदी क्षेपणास्त्र स्पाइक के खरीद के लिए किया गया 3175 करोड़ रुपयों का अनुबंध निरस्त कर दिया। अब भारत देश में ही इस अस्त्र का अनुसन्धान और निर्माण करेगा।
भारत विश्व का सबसे बड़ा हथियार आयातक है। इज़राइल के साथ हमारे रक्षा सामान खरीद के कई अनुबंध अभी चल रहे है। उस में बराक मिसाइल वगैरह शामिल है। इज़राइल के साथ इस पहल का श्रेय अटल बिहारी वाजपाई के कार्यकाल में भारत ने जो नजदीकियां इज़राइल के साथ स्थापित की, उस को जाता है। मोदी ने अटलजी के कार्य को आगे बढ़ाया और इज़राइल के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित किए। इस के विपरीत कांग्रेसी कार्यकाल में स्थानिक कट्टर मुल्लों के वोट बैंक को मजबूत करने के लिए इज़राइल से बिलावजह अदावत और फिलिस्तीन से चुम्माचाटी होती थी। मोदीजी के विदेश नीति का परिणाम है कि फिलिस्तीन भी हमारे साथ मधुर रिश्ते बनाए है, और इज़राइल भी!
भारत और इज़राइल दोनों लगभग एक ही समय, दुसरे विश्व युद्ध के बाद स्वतंत्र हुए। भारत के सामान इज़राइल को भी भीषण मानवीय त्रासदी का सामना करना पडा "भारत को विभाजन के सम्बन्ध में, और इज़राइल को एकीकरण के सम्बन्ध में" उन के सारे नागरिक विश्व भर में बिखरे पड़े थे और स्वतंत्रता के समय वे एकत्र आ गए। भारत ने "करोड़ों हिन्दू पाकिस्तान में मरने के लिए छोड़ दिए, पर इज़राइल ने जहाज भर-भर कर यहूदी" उन के मातृभूमि में बसाने के लिए सारी दुनिया से लाए थे।
अब रक्षा सामान की बात करते हैं। एक साथ स्वतन्त्रता पा कर भी भारत और इज़राइल के औद्योगिक उत्पादन की निपुणता में जमीन-आसमान का अंतर है। विश्व की तीसरी महाशक्ति बनने जा रहे भारत को पुलिस निरीक्षक का एक पिस्टल भी चेक रिपब्लिक जैसे पिद्दी देश से मंगाना पड़ता है। इंसास से बेहतर रायफल भारत बना नहीं सकता। अर्जुन जैसे टैंक पर हजारो करोड़ रूपए खर्च कर के भी भारत उसे इस्तमाल योग्य नहीं बना पाया है। भारत में बने 155 मि॰मी॰ तोप में घटिया पुर्जे इस्तमाल होते हैं, और उन्हें गुणवत्ता परिक्षण में नकारा जाता है। गोला-बारूद और हेलमेट-जूतों जैसे आम जरूरत को हम इतने बड़े देश के अन्दर नहीं बना सकते। तेजस जैसा विमान बनाने के लिए हमें बीसियों साल लग जाते हैं, जिस से वह बनते-बनते ही कबाड़ कहलाया जाता है। भारतीय नौसेना इसे अपने कैरियर जहाज़ों पर तैनाती से मना कर रही है। भारत के हेलिकॉप्टर और अन्य साजो-सामान की भी कमोपेश यही स्थिति है।
इन सब का कारण है – 'देश को दीमक की तरह चाट रही राजनीतिक प्रणाली' - कांग्रेस नें देश पर 60 वर्ष अनिर्बंध राज किया, और "1948 के जीप घोटाले" से ले कर बोफोर्स और अगुस्ता वेस्टलैंड तक इन का रक्षा सामान खरीद में भ्रष्टाचार का लंबा इतिहास रहा है। रक्षा सामान का यदि देश में उत्पादन होता तो इन को भ्रष्टाचार के लिए कम मोके मिलते। इस कारण इन्होंने देश को पंगु बना कर रख दिया और जो सामान खरीदा जाता उस की गुणवत्ता भी माशाल्लाह ही होती है। याद कीजिए कि कितनी निरंतरता से भारत के गोला-बारूद भंडारों में आग लग जाती थी, हर वर्ष ग्रीष्म में ऐसी खबरों का ताँता लगता था। भ्रष्ट सौदों से लाया घटिया सामान ऐसी आगों में जला कर नष्ट किया जाता था, और फिर न बाँस रहता, न बांसुरी बजती! मैं ऐसी ख़बरें सुन-पढ़ कर बड़ा दुखी होता था।
फिर मोदीजी की सरकार आई, और उन्होंने 'मेक इन इण्डिया' का नारा दिया। हर आयातित वस्तु का स्वदेशी पर्याय बनाने का सच्चा प्रयास होने लगा। जहां रक्षा सामान की कमी थी वहां खरीद हुई, और साथ ही साथ उस के स्वदेशी उत्पादन पर भी पहल होने लगी। यह देश के लिए अभूतपूर्व था।
कुछ सप्ताह पहले भारत ने अपने स्वदेशी टैंक भेदी क्षेपणास्त्र नाग का सफल परिक्षण किया था। शायद मोदी सरकार ने यह तय कर लिया है कि भारत के अनुसन्धान की स्थिति स्वदेशी उत्पादन के योग्य है और उसे विदेशी उत्पादों पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं है। जब यह बात तय हो गई तो उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के राफेल के साथ किया अनुबंध निरस्त कर दिया। औपचारिक ठेका दिए जाने के पहले निरस्त होने के कारण राफेल कोई बड़ा शोर नहीं कर सकी, और घोषणा का समय ऐसा चुना गया कि राफेल को मुस्कुरा कर इस बात को मीठे बोलों के साथ छोड़ना पड़ा। वर्ना आर्थिक नुकसान को राजनीतिक पेंच लड़ा कर और मुंह नोचने तक सबक सिखाकर कड़ाई से पूरा किया जाता है।
मोदी को देश के अंतर्गत 'राष्ट्रवादी गुटों' के नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है, और लोग कह रहे है कि यदि कांग्रेस के चीखने-चिल्लाने से कान पका ही लेने थे, तो मोदी जी को क्यों चुन के दिया?
भाई लोगों, मोदी को आप ने चुन के दिया कि देश को आगे ले जाए, और जो नुकसान कांग्रेस ने अपने कार्यकाल में किया उसे भर कर देश और विकास की ओर अग्रसर हो। इस में दीवारों पर भगवा पोतने से और आते-जाते "जय श्रीराम!" और "मंदिर भव्य बनाएंगे!" कहने से अधिक परिश्रम और योजना की आवश्यकता होती है। मैं यह नहीं कहता कि हिन्दू पहचान को प्रतिष्ठा देनी आवश्यक नहीं है, लेकिन ये दोनों काम परस्पर विरोधी नहीं है। और प्राथमिकता सर्वदा देश की होनी चाहिए, इसी में धर्म समाहित है।
तो मित्रों, हमें खुद पता नहीं कि हम ने किस गुणवत्ता के नेता को उठा कर कमान थमा दी है। इस सौभाग्य को जान कर मोदीजी के नेतृत्व में हमें आश्वस्त होना चाहिए कि यह बन्दा यदि कुछ करेगा तो देश के लिए और समाज के लिए पूरी तरह योग्य काम ही करेगा। इसलिए ठण्ड रखो और मोदीजी का साथ दो! इसी में भलाई है।

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