रिसर्च: 2020 तक होंगे भारत में सबसे अधिक दिल के मरीज़

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रिसर्च: 2020 तक होंगे भारत में सबसे अधिक दिल के मरीज़

देश में 2020 तक दिल की बीमारी से पीड़ित लोगों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा होगी1 यह दावा कार्डियाेलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया की ओर से कराये गये ताजा सर्वेक्षण में किया गया है।सर्वेक्षण के अनुसार देश में दिल के मरीजों में इस समय 54 लाख लोग हार्ट फेल्यर से पीडि़त हैं। साेसाइटी के अध्यक्ष डाक्टर शिरिष हिरेमथ का कहना है कि इस स्थिति को देखते हुए ही 29 सितंबर को वर्ल्ड हार्ट डे के अवसर पर विशेषज्ञों ने इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरुक बनाने के लिए इससे जुड़े लक्षणों के प्रति उन्हें सचेत करते हुए इन्हें तुरंत पहचान कर जरुरी इलाज करने की सलाह दी है। श्री हिरमेथ के अनुसार भारत में जितनी तेजी से ह्दयघात और उससे होने वाली मृत्युदर में बढ़ोतरी हो रही है उसे देखते हुए इसे प्राथमिकता देने की जरुरत है। बीमारी के बढ़ते मामलाें को देखते हुए सभी हितधारकों को सामुदायिक स्तर पर बीमारी के प्रति जागरुकता बढ़ाने की जरुरत है। उन्हाेंने कहा कि हार्ट फेल्योर और हार्ट अटैक एक अवस्था नहीं है दोनों में काफी अंतर होता है। हॉर्ट फेल्योर की स्थिति में दिल की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हेैं जिससे वह रक्त को प्रभावी तरीके से पंप नहीं कर पातीं। इससे दिल तक ऑक्सीजीन व जरुरी पोषक तत्वों के पहुंचने की गति सीमित हो जाती है जबकि हार्ट अटैक दिल के काम बंद कर देने की अवस्था होती है जिससे इन्सान की मौत हो जाती है।
विशेषज्ञों के अनुसार दिल की बीमारी में उच्च रक्त चाप ,खराब जीवन शैली,मधुमेह,शराब का सेवन ,दवाइयों का अत्यधिक इस्तेमाल तथा फैमिली हिस्ट्री की बड़ी भूमिका होती है। इसके लक्षणों में सांस लेने में तकलीफ,थकान,टखनों,पेट और पैरों में सूजन,भूख न लगना,अचानक वजन बढ़ना,धड़कन तेज होना और चक्कर आने जैसी परेशानियां शामिल हैं। एम्स के कार्डियोलाजी विभाग के प्रोफेसर डाक्टर संदीप मिश्रा के अनुसार खराब जीवन शैली के कारण दिल की बीमारी पश्चिमी देशों की बजाए भारत में लोगों को एक दशक पहले ही बीमार बना रही है। देश में इस बीमारी के होने की औसत उम्र 59 वर्ष है। जागरुकता की कमी,महंगे इलाज तथा ढांचागत सुविधाओं की कमी से इसके मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। खासतौर युवाओं में पिछले दो दशक से यह बीमारी तेजी से बढ़ी है। साल 1990 से लेकर 2013 तक एेसे मामलों में 140 फीसदी का इजाफा हो चुका है। जीवन शैली में तेजी से हो रहा बदलाव और तनाव युवाओं को इसका शिकार बना रहा है। अमेरिका और यूरोप में दिल की बीमारी से पीड़ित रोगियों की तुलना में भारत में इससे पीड़ित लोगों की आयु 10 साल कम है यानी कि वे ज्यादा युवावस्था में ही इसकी चपेट में आ रहे हैं। सर्वेक्षण के आंकडों के अनुसार कम और औसत आय वाले भारत जैसे देश में दिल की बीमारी से होने वाली मृत्युदर उच्च आय वाले देशों से बहुत ज्यादा है।

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