संसद की दो संसदीय समितियों ने 'पद्मावती' का परीक्षण किया, सफाई में भंसाली ने फिल्म को काल्पनिक बताया
कल गुरुवार को संसद की दो समितियों ने फिल्म ‘पद्मावती’ पर उपजे विवाद का परीक्षण किया।
Shreshtha Verma | Updated on:1 Dec 2017 12:56 AM IST
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कल गुरुवार को संसद की दो समितियों ने फिल्म ‘पद्मावती’ पर उपजे विवाद का परीक्षण किया।
नयी दिल्ली, 30 नवंबर (एजेंसी) संसद की दो समितियों ने आज फिल्म 'पद्मावती' पर उपजे विवाद का परीक्षण किया। फिल्म के निर्देशक संजय लीला भंसाली आज इनमें से एक संसदीय समिति के समक्ष पेश हुए और उन्होंने इतिहास के साथ छेड़छाड़ किए जाने के आरोपों को खारिज किया।
भंसाली ने कहा कि यह एक काल्पनिक फिल्म है और 500 साल पुरानी एक कविता पर आधारित है।
यह पहली बार हुआ होगा कि सेंसर बोर्ड द्वारा एक फिल्म को स्वीकृति दिए जाने से पहले किसी संसदीय पैनल ने उसपर विचार-विमर्श किया हो।
भंसाली और सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी, सूचना प्रौद्योगिकी पर बनी संसद की स्थायी समिति के समक्ष पेश हुए। जोशी याचिकाओं पर विचार करने वाली संसदीय समिति के समक्ष भी पेश हुए।
बैठक में मौजूद एक सांसद ने बताया कि सूचना और प्रसारण मंत्रालय से जुड़े मुद्दों पर विचार करने वाली आईटी पर बनी स्थायी समिति ने भंसाली को लिखित में जवाब देने के लिए दो हफ्ते का समय दिया है।
इन दोनों समितियों की अध्यक्षता भाजपा के सांसद कर रहे थे।
आईटी पर बने पैनल के सदस्यों के साथ करीब तीन घंटे चली लंबी बातचीत के दौरान भंसाली ने कहा कि फिल्म काल्पनिक है और सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी की कविता पद्मावत पर आधारित है जो वर्ष 1540 के आस-पास लिखी गई थी।
सांसद ने बताया कि भंसाली की यह प्रतिक्रिया समिति के कुछ सदस्यों द्वारा यह पूछे जाने के बाद आई कि इतिहास से घटनाओं और पात्रों का चित्रण करने वाली फिल्म को काल्पनिक कैसे कहा जा सकता है।
सांसद ने बताया कि एक अन्य सदस्य ने भंसाली से पूछा कि क्या यह इतिहास के साथ छेड़छाड़ करना नहीं हैं।
भंसाली ने कहा कि यह विवाद अफवाहों के कारण हुआ है।
सूत्रों ने बताया कि सदस्यों ने भंसाली से पूछा कि फिल्म को मीडिया के कुछ वर्गों को क्यों दिखाया गया और जानना चाहा कि क्या ऐसा सेंसर बोर्ड को प्रभावित करने के लिए किया गया था।
एक सदस्य ने कहा, "आपने कैसे मान लिया कि फिल्म एक दिसंबर को रिलीज हो जाएगी जबकि आपने 11 नवंबर को सीबीएफसी को आवेदन भेजा था? सिनेमैटोग्राफी अधिनियम के मुताबिक किसी फिल्म के लिए प्रमाणपत्र जारी करने से पहले सीबीएफसी 68 दिन ले सकती है।" सूत्रों ने बताया कि कुछ सदस्यों ने जानना चाहा कि क्या विवाद पैदा करना फिल्म के प्रचार का एक तरीका है।
पैनल ने कहा कि सोशल मीडिया समेत मुख्यधारा की मीडिया जारी विवाद के कारण फिल्म को काफी तरजीह दे रही है।
सूत्रों ने बताया कि कुछ सदस्यों ने यह भी दावा किया कि भंसाली की फिल्म कुछ समुदायों को "निशाना बनाने वाली" प्रतीत होती है जिस कारण तनाव पैदा हुआ।
उन्होंने बताया कि पैनल ने भंसाली से पूछा कि क्या वह अपनी फिल्म में जौहर को बढ़ावा देना चाहते हैं वह भी ऐसे समय में जब देश में सती प्रथा प्रतिबंधित है। जौहर राजस्थान की एक प्रथा थी जिसमें महिलाएं खुद को आग में झोंक देती थीं।
सेंसर बोर्ड अध्यक्ष प्रसून जोशी याचिकाओं की सुनवाई करने वाली संसदीय समिति के समक्ष पेश हुए और उन्होंने कहा कि फिल्म को अभी तक मंजूरी नहीं दी गई है और वह इसके लिए विशेषज्ञों से राय-मशविरा करेंगे।