समोसे की आत्मकथा

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समोसे की आत्मकथा
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जिस प्रकार मनुष्य के जीवन में मौत और दूकान में ग्राहक के आने का कोई निश्चित समय नहीं होता.... ठीक ऐसे ही मुझे खाने का भी कोई निश्चित समय नहीं है

मैं समोसा हूँ..... छोटा सा तिकोना समोसा

ब्रह्माण्ड के किसी भी हलवाई की दुकान पर दो चीजें होना जरूरी है वर्ना वह दूकान हलवाई की दूकान नहीं कहलाती.... पहला तो हलवाई खुद और दूसरा मैं यानि कि समोसा !

मैं संसार की एकमात्र ऐसी रचना हूँ जिसके तीन कोने होने के बावजूद भी शान से सीना तान कर खड़ा हो जाता हूँ..... हलवाई की दुकान पर जब मुझे भर कर रखा जाता है तो तले जाने से पहले मैं और मेरा पूरा ग्रुप पंक्तिबद्ध रूप से यूँ ट्रे में खड़े दिखता हैं मानो सफ़ेद वर्दी पहने जवान सावधान की मुद्रा में खड़े होकर गार्ड ऑफ़ ऑनर दे रहे हों

अपने इसी शाही अन्दाज़ के कारण सैंकड़ों वर्षों से मैं स्नैक फ़ूड का अघोषित सम्राट हूँ और अपनी दो महारानियों यानि कि "हरी चटनी और लाल चटनी" के साथ स्वाद के दीवानों के दिलों में राज करता हूँ।

मैं अमीर-गरीब में फर्क नहीं करता..... एयरपोर्ट लाउंज की फैंसी लुटेरी कॉफ़ी शॉप में "टू समोसास फॉर टू हंड्रेड फिफ्टी रूपीज़" में भी मिलता हूँ और डाकखाने के सामने टीन के पतरे को लोहे की तार के साथ बिजली के पुराने खम्भे के साथ बाँध कर बनायी गई टपरी पर "दस के दो" भी मिलता हूँ...... ताज़ होटल की चाँदी की प्लेट में भी परोसा जाता हूँ और पुल के नीचे वाले ठेले पर अख़बार में लिपटा हुआ भी मिलता हूँ ...... मतलब कुल मिला कर बड़े वाले सेठ जी और सेठजी के घर का नौकर दोनों मेरा स्वाद लेते है... थ्रू देयर ऑन प्रॉपर चैनल !

सड़क के किनारे किसी ठेले पर छोले और चटनी के साथ मेरा स्वाद लेते हुए किसी नयी-नयी जॉब पर लगे हुए कूरियर कम्पनी के डिलीवरी बॉय के फ़ोन पर जब कॉल आती है और वो सामने से रिप्लाई करता है कि "मैं लंच कर रहा हूँ" तो क़सम से इतना प्राउड फ़ील होता है कि मेरे अंदर के आलू "अजीमो शान शहंशाह" वाला बैकग्राउंड म्यूज़िक चला कर नाचने लगते हैं..... बस यूं समझिये कि जहाँ कुछ भी खाने को नहीं मिलता वहां पर भी मैं यानि कि समोसा हमेशा प्राणरक्षक का काम करता हूँ।

जिस प्रकार मनुष्य के जीवन में मौत और दूकान में ग्राहक के आने का कोई निश्चित समय नहीं होता.... ठीक ऐसे ही मुझे खाने का भी कोई निश्चित समय नहीं है..... लखनऊ-बनारस में मुझे सुबह-सुबह नाश्ते में खाया जाता है..... देशभर की फ़ैक्टरियों, कम्पनियों की कैंटीन में तो मुझे दिन भर खाया जाता है..... स्कूल कॉलेजों की कैंटीन में मैं अनगिनत बनती बिगड़ती प्रेम कहानियों का गवाह बना हूँ..... इन कैंटीनों की कड़ाही में मेरा दिन भर.... निरंतर उत्पादन होता ही रहता है !

लेबर को ओवरटाइम का पैसा भले ही बीस रुपए कम दे दो पर बीच में एक ब्रेक लेकर चाय के साथ दुई समोसा खिला दो फिर देखो कैसे लेंटर डालने का काम भाँय से निपटता है।

दिल्ली में मुझे मैश किए हुए आलू से भरा जाता है तो पंजाब में कटे हुए चौकोर आलुओं से..... मुम्बई वाले मुझे पाव के बीच में रख कर "समोसा पाव" बना देते हैं और चेन्नई-बैंगलोर वाले मेरा रूप बदल कर प्याज़ की भरावन के साथ मेरे खोल को एनवेलप की तरह चपटा आकार देते हुए बंद करते हैं और बिल्कुल क्रंची रखते हैं..... वहीं भारत के बाहर खाड़ी देशों में मुझमें कीमा भर कर मांसाहारी रूप भी दिया जाता है तो दूसरी ओर Haldiram's International वाले मुझे मटर समोसा, काजू समोसा, पनीर समोसा आदि जैसे अटरंगी वेरीयंट में बनाते हैं !

देश भर में कहीं भी किसी स्कूल में निरीक्षक आ जाएँ, किसी कम्पनी में ऑडिटर आ जाएँ, दुकान पर कोई पुराना ग्राहक ख़रीदारी करने आ जाए तो ट्रे में चाय के कप के साथ मेरा होना उतना ही स्वाभाविक है जितनी कि सेटमैक्स पर बार-बार सूर्यवंशम का आना...... फिर चाहे चाय के साथ चिप्स, बिस्किट, भुजिया कुछ भी हो पर अतिथि के लिए "अरे ! एक समोसा तो लीजिए" का आग्रह सम्बोधन एक सम्मान सूचक वाक्य माना जाता है.

भारत के राष्ट्रीय स्नैक की पदवी के लिए चाहे तो कोई सर्वे करवा लीजिए चाहे वोटिंग, मेरा दावा है कि इस पदवी पर मेरा चुनाव होना 100% पक्का है......यह मैं नहीं कह रहा हूँ बल्कि विश्व भर में मेरे करोड़ों चाहने वाले कह रहे हैं !

आपसे निवेदन है कि इस पोस्ट को इतना शेयर_करें कि मुझे स्नैक्स का अधिकारिक सम्राट घोषित करने का दावा मोई जी तक पहुँच जाए !!

आपका अपना..... समोसा साथी

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