भैरव से भैरवी तक के साथ दुनिया की सुर-यात्रा को तैयार हैं सुरों के दो साधक

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भैरव से भैरवी तक के साथ दुनिया की सुर-यात्रा को तैयार हैं सुरों के दो साधक

अव्वल तो वो दोनों खुद को दो कहलाना पसंद नहीं करते. इस जोड़ी को कोई अलग-अलग नाम से बुलाता भी नहीं है. कोई पंडित राजन मिश्र या पंडित साजन मिश्र नहीं कहता. लोग इन्हें राजन साजन मिश्र कहते हैं. दोनों की उम्र में पांच साल का फर्क जरूर है. दिल इस कदर मिले हुए हैं कि एक की तबियत खराब हो तो तकलीफ दूसरे को होती है.
पिछले करीब पचास साल से दोनों भाई साथ साथ गा रहे हैं. सिर्फ गा ही नहीं रहे बल्कि साथ-साथ खा भी रहे हैं. तेजी से बदलते समाज में दोनों भाईयों का परिवार अब भी संयुक्त परिवार की विचारधारा का है. दोनों घर का खाना साथ बनता है.
ये भैरव से भैरवी तक का कॉन्सेप्ट किसका है?
इस सवाल के जवाब में बड़े भाई यानी पंडित राजन मिश्र बताते हैं- 'भैरव सुबह का राग है और भैरवी रात का, इन दोनों के बीच में कई सारे राग हैं. दोपहर के, शाम के, रात के. इन दोनों रागों के बीच दूसरी रागों का बड़ा 'स्पेक्ट्रम' है. इससे पहले जर्मनी, मुंबई और अहमदाबाद में इस तरह की 'थीम' पर हम दोनों भाई गा चुके थे. वो कार्यक्रम 7-7 घंटे के थे. ऐसी इच्छा हुई कि इस तरह का कार्यक्रम लेकर पूरी दुनिया का दौरा किया जाए. एक रोज सलोनी गांधी (आयोजक) के साथ इस पर चर्चा हुई. उन्होंने कार्यक्रम की रूपरेखा तय की और अब इसी महीने की 18 तारीख से इस विश्व दौरे की शुरूआत हो रही है.'पंडित राजन-साजन मिश्र से इस सवाल को पूछने का कोई मायने ही नहीं है कि इस विश्व दौरे की शुरूआत बनारस से क्यों? ऐसा इसलिए क्योंकि एक पूरा का पूरा बनारस तो इनके दिल में हमेशा जीता है. बनारस में पैदा होने से लेकर, कबीरचौरा में गुजारे बचपन तक हर बात में पंडित जी लोगों को गर्व है. यहीं से वो संस्कार मिले जो संयुक्त परिवार की भारतीय परंपरा को कायम रखे हुए हैं.
पंडित साजन मिश्र याद करके बताते हैं- 'लोग कई बार सोचते हैं कि हम भाईयों में कभी खटपट नहीं होती, इसके पीछे भी एक कहानी है. हमारे गुरु ने शिक्षा दी थी कि उनके जाने के बाद राजन मिश्रा, साजन मिश्रा के गुरु होंगे. तब से लेकर आज तक भैया ही मेरे गुरु हैं. मजे की बात ये है कि मैं उनसे बैठ कर शिक्षा नहीं लेता बल्कि स्टेज पर जब वो गाते हैं तो मैं उनसे सीखता हूं. मुझे याद है कि पिता जी के सामने हम दोनों भाई एक साथ रियाज करते थे. कई बार ऐसा होता था कि पिता जी छोटा होने के नाते मुझे इशारे से कहते थे कि सुनो-सुनो. कई बार तो मुझे गुस्सा भी आता था कि एक तो कान पकड़कर गाने के लिए ले आए, अब गाने बैठे तो कहते हैं कि सुनो-सुनो. लेकिन अब अहसास होता कि जो सुनने की क्षमता उन्होंने बढ़ाई उससे मेरा सीखना आसान हो गया.'
इन जगहों पर होगा कार्यक्रम
कार्यक्रम की रूपरेखा के बारे में पंडित साजन मिश्र विस्तार से बताते हैं- 'भैरव से भैरवी तक पूरे एक साल तक चलने वाला कार्यक्रम है. बनारस से शुरू करने के बाद अगला कार्यक्रम अहमदाबाद में आयोजित किया जाएगा. कोलकाता, दिल्ली, बैंगलोर, पुणे, मुंबई, भोपाल, लुधियाना, पटना में भी इस सीरीज में कार्यक्रम प्रस्तुति किए जाएंगे. इसके बाद विश्व दौरे का कारवां अगले साल मार्च में साउथ ईस्ट एशिया के अलग अलग देशों में कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाएंगे. अप्रैल, मई, जून का समय कनाडा और अमेरिका के कार्यक्रमों में बीतेगा. इसके बाद दक्षिणी अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से होकर इस विश्व दौरे का समापन होगा.'
यूं तो इस फेहरिस्त में तमाम देश ऐसे हैं जहां इन दोनों भाईयों की प्रस्तुतियां कई बार हो चुकी हैं, लेकिन इस विश्व दौरे को लेकर कितना उत्साह है? यह पूछने पर पंडित राजन मिश्र कहते हैं, 'पूछिए मत. बड़ा 'एक्साइटमेंट' है, 'चैलेंजिंग' भी है लेकिन हम अपने श्रोताओं, गुरुओं की शुभकामनाओं के साथ इसे शुरू करने के लिए तैयार हैं. इस बात का और ज्यादा गर्व है कि कंबोडिया में जो हिंदुओं का सबसे बड़ा अंकोरवाट मंदिर है, हम वहां भी इस दौरान कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे. शायद पहली बार ये अवसर होगा जब किसी भारतीय कलाकार की वहां प्रस्तुति हो रही हो.'संगीत से देंगे शांति का संदेश
इस विश्व दौरे का मकसद क्या है? क्या सिर्फ शास्त्रीय संगीत के प्रचार प्रसार को लेकर दुनिया भर में आप लोग कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहे हैं, इस सवाल के जवाब में साजन जी कहते हैं- 'हां वो तो एक मकसद निश्चित तौर पर है ही, लेकिन उससे भी बड़ा एक मकसद है. दरअसल इस वक्त पूरी दुनिया में 'अनरेस्ट' चल रहा है. आतंकवाद उफान पर है. हम लोग उसको लेकर बहुत पीड़ा में थे. अक्सर मैं और भैया बात करते थे कि हम क्या कर सकते हैं, फिर एक दिन बड़े भैया बोले कि हम कलाकार हैं हम सुर दे सकते हैं, सुरों की हारमोनी दे सकते हैं. उसी दिन तय हो गया था कि पूरी दुनिया में शांति और भाई चारे का संदेश लेकर अपने संगीत से कुछ शांति पैदा करने की कोशिश करेंगे. 2015 में ही इस विश्व दौरे की योजना बनना शुरू हो गई थी. सारी बातों के तय होते होते दो साल लग गए लेकिन अब सारी योजनाएं अपना अंतिम स्वरूप ले चुकी हैं.'
इस सार्थक संदेश और संगीत के शानदार सफर पर निकल रहे भाईयों को फ़र्स्टपोस्ट की तरफ से शुभकामनाएं देते हुए एक बनारसी सवाल पूछने का मन कर गया, पंडित जी ये सवाल दोनों लोगों से है, इतने लंबे सफर में क्या-क्या खास लेकर जाएंगे? बनारसी पान का इंतजाम कैसे होगा? जवाब की शुरूआत दोनों भाईयों के ठहाके से होती है, फिर पंडित राजन मिश्र बताते हैं- 'छुपा-छुपा कर ले जाना पड़ेगा पान. पान यूं तो विदेशों में भी खाने को मिल जाता है लेकिन 'बनारसी पत्ता' कहां मिलेगा. उसके बिना मजा नहीं आता. इस बीच साजन जी के चेहरे पर मुस्कान बता रही है कि वो कुछ कहना चाहते हैं- 'याद है भैया जर्मनी में एक बार पालक के पत्ते पर कत्था लगाकर पान बनाना पड़ा था और चीन में तो एक बार ऐसा हुआ कि उनकी कोई डिश थी जो पान के पत्ते से बनती थी उससे बड़ा जुगाड़ लगाकर पान का पत्ता निकलवाया गया था.' इस दिलचस्प पान के किस्से और हमारी शुभकामनाओं के साथ दोनों भाई विदा लेते हैं.

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