अंतर्राष्ट्रीय संबंधो में अमेरिका और भारत पर उसका असर

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अंतर्राष्ट्रीय संबंधो में अमेरिका और भारत पर उसका असर

हमेशा से ही भारत ही नहीं बल्कि सभी देशों के अंतर्राष्ट्रीय संबंधो में अमेरिका सबसे महत्वपूर्ण रहा है। भारत के लिए अमेरिका का प्रभाव हाल ही में अफगानिस्तान और ईरान के साथ संबंधो में ज्यादा है। पहले बात करें ईरान की तो पिछले साल अमेरिका-ईरान के बीच नयूक्लिर ट्रीटी को लेकर विवाद हुआ और ट्रीटी को रद्द कर दिया। इसके बाद ईरान पर सेंक्शन लगाने का एलान कर दिया अब दोनों देश एक-दूसरे पर प्रतिबंध लगाने तुले है।

(सेंक्शन- जब कोई बङा खिलाङी यह कह दे कि जो इसके साथ रहेगा वह मेरे साथ नहीं रह सकता है। अब छोटे खिलाङियों को न चाहते हुए भी बङे खिलाङी का साथ देना पङेगा, मजबूरी यह है कि उस बङे खिलाङी के बिना वह मैदान में ही नहीं रह सकता है ।)

भारत पर असर

अमेरिका का 6 महीने का दिया हुआ समय (2 मई) अब समाप्त हो चुका है। ईरान पर प्रतिबंधो के चलते चीन औऱ भारत सहित कई देशों के सामने समस्या खङी हो गयी है। भारत ने भी अपने निर्णय लिए और ईरान के साथ तेल का आयात बंद कर दिया है।

निर्णय लेने में कई तरह के पहलुओं को देखना होता है जैसे- तेल की आपूर्ति, रूपये की स्थिति या चालू खाते घाटे का प्रबंधन, देश की सुरक्षा के साथ और भी कई महत्वपूर्ण पहलू है जिसको देखते हुए भारत को निर्णय करने में मुश्किले हुई है।

भारत ने प्रतिरोध करते हुए पहले भी कई बार कहा है कि अमेरिका ने यह प्रतिबंध एक-पक्षीय तौर पर लागू किया है और भारत केवल संयुक्त राष्ट्र द्वारा लागू प्रतिबंधों को ही मानता है। लेकिन भारत यह भी जानता है कि ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों का पालन करने के लिये भारत, चीन सहित अन्य सभी देश इसलिए बाध्य हैं कि अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग लेन-देन अमेरिकी बैंकिंग चैनलों के ज़रिये ही होते हैं और जो देश अमेरिकी प्रतिबंधों को नहीं मानेंगे, वे अमेरिकी बैंकिंग चैनलों का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे। इसका असर यह होगा कि भारत को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में भारी दिक्कतें होंगी, क्योंकि ज़्यादातर व्यापार अमेरिकी डॉलर में ही होता है।

अमेरिका की इस तानाशाही से निपटने के लिए जर्मनी, फ्रांस और इंग्लैङ ने ईरान के साथ एक अलग पेमेंट चैनल बनाने की घोषणा की है। जिससे ईरान पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधो को दरकिनार करते हुए उसके साथ व्यापार जारी रखना है। इसका नाम है- INSTEX- Instrument in Support of Trade Exchange.

फिलहाल भारत ने ईरान से तेल आयात से मना कर दिया है। अब अगर तेल के दाम 10% भी बढते है तो रूपया 3 से 4 प्रति $ कमजोर होगा और महंगाई बढेगी। जेट विमानो के धाराशाई होने का एक सबसे बडा कारण तेल के दाम थे। साल 2018-19 में देश में कच्चे तेल का उत्पादन 4 फीसदी घटा है जिससे चुनौति और बढ गई है। हो सकता है कि भविष्य में ईरान से फिर से तेल की खरीद की जाए।

चाबहार भारत का इकलौता पोर्ट है जो देश से बाहर विकसित किया जा रहा है। जिसका इस्तेमाल वह अफगानिस्तान के अलावा मध्य एशिया के देशों के साथ व्यापार के लिये करना चाहता है। फिलहाल अमेरिका ने चाबहार को लेकर मानवीय आधार पर कुछ छूट दी है। तेल आयात के मामले में ईरान भारत के लिए सबसे ज्यादा सरल है क्योंकि ईरान बङे अनुपात में भारत को रूपये में तेल बेचता है। अन्य देशों से तेल महंगा भी पङ जाता है और भुगतान भी डॉलर में करना पङता है। ईरान खरीददारों को 60 दिन की उधारी देता है जो कोई और देश नहीं देता।

अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण सरकारी बहुराष्ट्रीय तेल-गैस कंपनी ओएनजीसी (ONGC) की सहायक कंपनी ONGC Videsh ने ईरान के फरजाद-B गैस क्षेत्र में निवेश करने की योजना फिलहाल स्थगित कर दी है।

अफगानिस्तान की बात करें तो अमेरिका ने अपने 14000 सैनिकों को वापस बुलाने की घोषणा की हुई है जिससे आईएस का फिर से यहां पैर पसरना तय है। अफगानिस्तान में असुरक्षा की वजह से भारत को भी मुश्किलों का सामना करना पङेगा। भारत अफगानिस्तान में सलमा डेम विकसित कर रहा है। सुरक्षा के अभाव में आधारभूत संरचनाओं का निर्माण भी मुश्किल हो जाएगा ।

अमेरिका का अफगानिस्तान पर यह निर्णय पाकिस्तान पर भी प्रभाव डालेगा । अमेरिका इतने दिन मजबूर था कि उसे अफगानिस्तान तक पहुंचने के लिए पाकिस्तान की मदद लेनी पङती थी। पाक की सङको और एयर स्पेस का प्रयोग करना पङता था । वैस देखा जाए तो जिस तरह पाकिस्तान में आतंकवादी गतिविधियों के होने के सबूत मिलते आए है ये सेंक्शन ईरान बजाय पाकिस्तान पर लगने चाहिए। किस तरह पाक ने अफ-16 का प्रयोग अमेरिका से बिना पूछे किया है इसका भी काफी असर पाक पर पङा है।

अमेरिका ने क्यों लगाए ईरान पर प्रतिबंध?

पिछले वर्ष नवंबर में अमेरिका ने वे सभी प्रतिबंध दोबारा लगा दिये थे जो 2015 में हुए परमाणु समझौते के बाद हटा लिये गए थे। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस समझौते की आलोचना करते हुए पिछले वर्ष मई में अमेरिका को इस समझौते से अलग कर लिया था। 2015 में हुए समझौते के तहत ईरान अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध हटाए जाने के एवज़ में अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने पर सहमत हुआ था। तब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा था कि यह समझौता ईरान को परमाणु हथियार विकसित करने से रोकेगा। लेकिन वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का तर्क है कि समझौते की शर्तें अमेरिका के लिये अस्वीकार्य हैं क्योंकि यह समझौता ईरान को बैलिस्टिक मिसाइल विकसित करने और पड़ोसी देशों में दखल देने से नहीं रोक पाया है। इन प्रतिबंधों के तहत अमेरिका उन देशों के खिलाफ भी कठोर क़दम उठा सकता है जो ईरान के साथ कारोबार जारी रखेंगे। वहीं अब ईरान ने कहा दिया कि वह परमाणु उर्जा को बढावा देगा।

अमेरिका के बेहद दबाव के बावजूद भारत अपने पुराने रणनीतिक मित्र रूस से एंटी मिसाइल सिस्टम एस-400 खरीदने के फैसले में कोई बदलाव नहीं करेगा।

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