इन्हें सेकुयलरिज़्म के दलाल कहें या हिज़ाब के ग़ुलाम?

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इन्हें सेकुयलरिज़्म के दलाल कहें या हिज़ाब के ग़ुलाम?तेहरान में होने जा रहे एशियन चेस गेम्स में शामिल होने से सौम्या ने इनकार कर दिया

शाब्बाश, सौम्या!

2015 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत में गणतंत्र दिवस की परेड अटेंड करने आए थे। परेड के बाद एक स्पीच में उन्होंने भारत को बहुसंस्कृतिवाद का पाठ सिखाने की कोशिश की और सहिष्णुता पर लेक्चर दिया।

तभी रियाद से ख़बर आई कि शाह अब्दुल्लाह मर गया है। महत्वपूर्ण स्ट्रैटेजिक पार्टनर होने के नाते अमेरिकी राष्ट्रपति का सऊदी अरब जाना ज़रूरी था। वह अपना भारत दौरा पूरा किए बिना ही रियाद के लिए रवाना हो गए। पर उनसे एक भूल हो गई, उन्हें अपनी पत्नी को साथ ले जाना पड़ा ! वही हुआ, जो होना था। हल्ला मच गया कि मिशेल ओबामा ने "अभद्र" कपड़े पहने और इस्लामिक संवेदनाओं का अपमान किया! "अभद्र कपड़े?" श्योरली! मिशेल, कोई मर गया था! आपको ग़मी के मौक़े पर बिकिनी नहीं पहननी चाहिए थी। माना कि आप बहुत ख़ूबसूरत हैं।

बट हैंग ऑन, क्या सचमुच मिशेल ने बिकिनी पहनी थी?

अगर आप Google करके देखें- "मिशेल ओबामा इन रियाद 2015" तो आप पाएंगे कि मिशेल ने नीले रंग का ख़ूबसूरत टॉप और लूज़ ट्राउज़र पहन रखे हैं, सिर से लेकर पैर तक ढंकी हुई!

"अभद्र पोशाक!"

जी हां, उनके बाल खुले थे। एक औरत के खुले बालों से इस्लाम शर्मसार हो गया! भारत में मिशेल ओबामा पूरे समय हंसते, खिलखिलाते, और एक कार्यक्रम में तो नाचते हुए भी नज़र आई थीं। रियाद पहुंचते ही उन्हें हक़ीक़तों का एहसास हो गया। भारत को कल्चर का पाठ सिखाने वाले बराक "हुसैन" ओबामा को तुरंत ही यह सबक़ सिखाया जाना जैसे नियति का ही निर्णय रहा होगा।

जो बेशऊर और ढीठ लोग दुनिया की प्रथम महिला की पोशाक़ के लिए उसकी मलामत कर सकते हैं, वो किसी मामूली औरत का क्या हश्र करते होंगे?

लेकिन शायद सौम्या स्वामीनाथन एक मामूली लड़की नहीं हैं।

तेहरान में होने जा रहे एशियन चेस गेम्स में शामिल होने से सौम्या ने इनकार कर दिया, क्योंकि वहां लड़कियों को हिजाब पहनना ज़रूरी था। सनद रहे साहेबान, यह ईरान की बात है, सो कॉल्ड पढ़े-लिखे लिबरल शिया मुस्लिमों का देश! सौम्या स्वामीनाथन ने वह कहा, जो दुनिया की करोड़ों मुस्लिम औरतों को कहना चाहिए: हम हिजाब और बुरक़ा नहीं पहनेंगी, ये हमारे मानवाधिकार का हनन है! लेकिन क्या वो ऐसा कह सकती हैं?

मोहम्मद कैफ़ ने सौम्या स्वामीनाथन के समर्थन में एक ट्वीट किया। अनुराग वत्स नामक मेरे एक मित्र ने कैफ़ के ट्वीट को शेयर किया। देखता क्या हूं, एक पढ़ी-लिखी मुस्लिम महिला वहां चली आई है और कह रही है कि सभी को अपनी पसंद की पोशाक़ पहनने का हक़ है, और यह अल्पसंख्यकों पर अत्याचार का बहाना नहीं बनाया जाना चाहिए!

अल्पसंख्यकों पर अत्याचार? बुर्क़ा और हिजाब पहनने से एक हिंदू लड़की द्वारा इनकार करना और मोहम्मद कैफ़ द्वारा यह उम्मीद जताना कि कम से कम खिलाड़ियों को मज़हबी क़ानूनों से मुक्त रखा जाएगा, यह अल्पसंख्यकों पर अत्याचार है?

अब आप देख सकते हैं कि उनके भीतर पिछले 1400 सालों में कोई बदलाव क्यों नहीं आया? क्योंकि उनके यहां पढ़े लिखे लोग जाहिलों से बड़े जाहिल हैं। पसंद की पोशाक़? यह काला क़फ़न मुस्लिम औरतों की पसंद की पोशाक़ है? लानत है!

आज की तारीख़ में दुनिया के सामने उपस्थित यह सबसे बड़ा साभ्यतिक संकट है कि दुनिया की एक चौथाई आबादी अपने भीतर एक बदलाव लाने को तैयार नहीं है। एक बदलाव! जो किताब में लिख दिया सो लिख दिया! अब वो बदलेगा नहीं। जान लगा देंगे लेकिन बदलेंगे नहीं। तहज़ीब हराम है, जहालत हलाल है!

मेरा स्पष्ट मत है कि मनुष्य सभ्यता के विकासक्रम के दौर में अब हम उस बिंदु पर आ गए हैं, जब यह "इस्लाम बनाम अन्य" की स्थिति निर्मित हो चुकी है। विश्व की सभ्यता एक ऐसे रथ की तरह है, जो तेज़ गति से दौड़ रहा है, लेकिन इस्लाम नामक पहिया टूटा हुआ है, उसकी आकांक्षाओं को बाधित करता हुआ! इस पहिये को दुरुस्त करना बहुत ज़रूरी है!

शाब्बाश, सौम्या! तुम जीत गईं, और हिजाब पहनकर ईरान जाने वाली लड़कियां हार गईं।

तुम्हें दुआओं के स्वर्ण पदक!

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