पेट्रोल/डीजल : कब बंद होगी सरकारी लूट ?

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पेट्रोल/डीजल : कब बंद होगी सरकारी लूट ?Fuel Price out of Pocket Range

देश में आम आदमी को यह समझ में नहीं आ रहा है कि अन्तरराष्ट्रीय बाजार में जब कच्चा तेल के दाम वर्तमान में 54 डॉलर प्रति बैरल है तो पेट्रोल 80 रुपये लीटर क्यों बिक रहा है? जब तेल की कीमत बाजार के हवाले कर दी गई तो फिर बाजार के अनुसार ही इनकी कीमतें निर्धारित होनी चाहिए।
अर्थशास्त्र का सिद्धांत भी यही मानता है। जब कच्चा तेल सस्ता है तो भारत में पेट्रोल-डीजल महंगा क्यों? 16 जून से सरकार ने प्रतिदिन के आधार पर तेलों के मूल्य तय करने का सिस्टम लागू किया, लेकिन उपभोक्ता तो हर दिन ठगा ही जा रहा है, क्या उसे एक दिन भी सस्ता पेट्रोल-डीजल मिला है?
जुलाई 2014 में, जब मोदी सरकार सत्ता में आई, अन्तरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल 112 डालर प्रति बैरल था, जो अब आधे से भी नीचा है। 2014 में पेट्रोल दिल्ली में 73.60 रुपए प्रति लीटर था लेकिन आज 70 रुपये से अधिक है। मुंबई में 80 रुपये लीटर तक है। सवाल है कि जब कच्चा तेल काफी सस्ता है तो पेट्रोल की कीमत बढ़ी क्यों वसूली जा रही है? यह आम आदमी की समझ से परे हैं, और आम आदमी में मैं भी आता हूँ।
पेट्रोलियम मंत्री ने साफ कर दिया है कि सरकार इस मामले में कुछ नहीं कर सकती, क्योंकि सब कुछ तेल कंपनियों के हाथों में है। उनकी ऐसी टिप्पणी से साफ है कि सरकार ने आम आदमी को तेल कंपनियों के भरोसे छोड़ दिया है। साथ ही पेट्रोलियम मंत्री ने यह और कह दिया कि जीएसटी परिषद अब पेट्रोलियम उत्पादों को भी जीएसटी के दायरे में लाने पर विचार करें, जो फिलहाल लागू नहीं है। यदि पेट्रोलियम पदार्थों को भी जीएसटी के दायरे में ले लिया गया तो दाम नियंत्रित होंगे या नहीं, जो स्पष्ट नहीं है। पेट्रोल-डीजल के बढ़े दामों का सारा खेल सरकार ही नहीं, बल्कि आम आदमी ठीक से समझता है।
''हकीकत यह है कि राज्य सरकारों व केन्द्र सरकार ने पेट्रोल-डीजल को अपना खजाना भरने का साधन बना रखा है। सरकारें जमकर उत्पाद शुल्क वसूल रही हैं''। इसमें केन्द्र का शुल्क अलग और राज्यों के अलग-अलग हैं। केन्द्र ने अपने शुल्क में फिलहाल कटौती से इंकार किया है तो राज्यों से कटौती की उम्मीद भी नहीं की जा सकती। दरअसल, देखें तो राज्य जितना कर तेल पर वसूलते हैं, वह जरूरत से काफी ज्यादा है।
महाराष्ट्र तो एक ऐसा राज्य है जो पेट्रोल पर 47.64 प्रतिशत वैट शुल्क वसूलता है। इस वक्त 26 राज्य पेट्रोल पर 25 फीसदी से अधिक वैट वसूल रहे हैं। यह उनकी मोटी-कमाई का जरिया है और इसकी मार आम आदमी पर पड़ रही है। अपनी कमाई बचाने के लिए ही राज्यों ने तेलों को जीएसटी में लाने का विरोध किया था और आगे भी उम्मीद नहीं कि वे मान जाएंगे।
सवाल है कि क्या आम आदमी ऐसे ही तेल की मार झेलता रहेगा? इस सवाल का जवाब आखिर केन्द्र सरकार को देना ही होगा क्योंकि तेल का सारा खेल उसका ही चलाया हुआ है। संकट यह है कि तेल के दाम आखिर कैसे तय हों? इसके लिए अभी तक कोई तर्क संगत और पारदर्शी प्रणाली बनाई ही नहीं गई है।
माना कि तेल कंपनियां घाटे का रोना रो रही थी तो केन्द्र ने तेल को बाजार के हवाले करके झंझट से मुक्ति पा ली। लेकिन अब तेल कंपनियों का घाटा भी खत्म हो चुका है तो आम आदमी पर बोझ डाला जा रहा है। आम आदमी तो पहले से ही महंगाई की मार झेल रहा है महंगे पेट्रोल-डीजल से यह मार का कोड़ा उस पर और पड़ेगा।
वैसे मुझे पूर्ण आशा ही नहीं बल्कि विश्वास है कि 2019 के लोकसभा के पहले पेट्रोल की कीमते आश्चर्यजनक ढंग से कम होगी।

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