इधर कंगना ने की मोदी की तारीफ, उधर छद्म नारीवादियों का आरंभ हुआ रुदाली विलाप

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सुना है नारीवादिनियों को बड़ी तीव्र घृणा आती है मोदी से - अतिशय घृणा

एक सिने-अभिनेत्री ने तारीफ़ क्या कर दी मोदी की तो उसे जात-निकाला दे दिया नारीवादिनियों ने।

तुम उसकी तारीफ़ कैसे कर सकती हो, वह तो तुम्हें फेमिनिस्ट भी नहीं रहने देगा, स्वतंत्रता कितनी मिल पाएगी तुम्हें उसके काल में, पार्कों में भी घूमने नहीं देगा, कह दिया है नारीवादिनियों ने।

मानो मोदी के पास लट्ठ लेकर इनके पीछे घूमने के अलावा और कोई काम न हो। मोदी नहीं भाता क्योंकि अनुशासनयुक्त जीवन है उसका, सिक्स पैक नहीं बनाता, पार्टियां नहीं करता, चापलूसी करते नहीं दिखता।

कभी मोदी को जुमलेबाज कहा जाता है और कभी उस पर चुप रहने का आरोप लगाती हैं नारीवादिनियाँ, जो जुमलेबाजी कर के ही सफल होता जा रहा हो, वह चुप कैसे रह जाता है?

न जाने कौन सा स्थापित लोकतंत्र बार-बार खतरे में आ जाता है, जहाँ लोग मनचाही बात कह रहे हैं, लिख रहे हैं, सरकार और राष्ट्र-विरोधी बातें हो रही हैं, भारत-विखंडन की बात हो रही है, बातें ही बातें की जा रही हैं विरोध में फिर भी खतरा है भारत में।

ख़तरा तो अंधेरे में वॉशरूम जाने में भी है, कहीं उसी ख़तरे की बात तो नहीं कर रही है नारीवादिनियाँ।

भारत जैसे देश जो शरणार्थियों का, घुसपैठियों का, आतंकवादियों का बहिष्कार नहीं कर पाता, वह किसी आमिर ख़ान, शाहरुख खान, सलमान ख़ान,सैफ़ अली खान का बहिष्कार कब से करने लगा। इतनी दौलत, शोहरत, बीवियां क्या बहिष्कार करने पर मिलती हैं या सर-माथे पर बिठाने पर?

निजता का अधिकार पर बड़ी बड़ी बातें करने वाली नारीवादी यह बर्दाश्त नहीं कर पा रहीं कि सामनेवाले ने भी संघर्ष पूर्ण जीवन जिया है, इसके बावजूद सफ़ल है और कोई शिकायत भी नहीं कर रहा, कोई रोना भी नहीं रो रहा, बल्कि अपनी उर्ज़ा को राष्ट्रहित में लगा दिया है, बजाय कैंडल-मार्च और धरना प्रदर्शन के।

यह अस्तित्वाद, निजता, स्वतंत्रता जैसे शब्द केवल नारिवादिनियों के लिए अर्थ रखते हैं बाकी सब के लिए ये निरर्थक हो जाते हैं। मोदी के लिए तो ये शब्द बने ही नहीं।

इनका कहना है मोदी ने मोब-लीनचिंग करवा दिया चार साल से, पर यह लीनचिंग तब परेशान नहीं करती जब मामला हिंदुओं का हो।

मोदी ने दंगे भी करवा दिए चार साल में, पता नहीं कहाँ-कहाँ।

खबरें तो कैराना से किसी और समुदाय के पलायन की आती रहीं और नारिवादिनियाँ चुप ही रहीं। नारिवादिनियों केआवरण में छुपी वामपंथीनियों, हम आपका सारा खेल समझते हैं।

अगर कोई मर्द आपकी खूबसूरती की तारीफ में कसीदे नहीं पढ़ रहा, आपके आगे-पीछे नहीं घूम रहा, इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं कि वह मर्द नहीं है। वह आपका बाप भी हो सकता है।

हो सकता है आपके आँसू प्रत्यक्ष रूप से न पोछता हो पर आपकी सुरक्षा को लेकर फिर भी प्रतिज्ञाबद्ध हो।

हर समय औरतों की उनमुक्क्ता और सौंदर्य-गान करना ज़रूरी नहीं सभी मर्दों के वश की बात हो।

पितृसत्तात्मक में पितृ लगा है तो इसका मतलब यह नहीं कि मोदी-युग में सभी मर्द पिता ही हो जाएंगे आपके।

निश्चिन्त रहें, खूबसूरती की तारीफ़ फिर भी हुआ करेगी। इसके लिए मोदी से घृणा रखने की आवश्यकता नहीं।

मोदी को मर्द नहीं एक बार पिता मान कर देखिए, हो सकता है थोड़ी सहूलियत हो जाए।

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