भाजपा राष्ट्रवाद की गंगा नहीं है

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भाजपा राष्ट्रवाद की गंगा नहीं है

1924 में रूस के हालात : सर्वहारा वर्ग के महान नेता लेनिन की मृत्यु हो चुकी है। सत्ता के दो दावेदार - स्टालिन और ट्राटस्की

ट्राटस्की विभिन्न संस्थाओं के अध्यक्षों से मिलकर अपनी दावेदारी मजबूत कर रहा है और स्टालिन ?

स्टालिन लेनिन की शवयात्रा का नेतृत्व कर रहा है।

भावुक लोग लाखों की संख्या में आ रहे हैं।

भावुक लोग लेनिन की जय जयकार कर रहे हैं।

भावुक लोग लेनिन की याद में विलाप कर रहे हैं।

उन्हें दिख रहा है दिलासा देता स्टालिन,

उन्हें दिख रहा लेनिन के पीछे खड़ा स्टालिन,

और उन्हें स्टालिन में दिख रहा है अगला लेनिन!

नियति ने फैसला सुना दिया। ट्राटस्की को अंत्येष्टि में भाग ना लेने की अनौपचारिकता भारी पड़ी।

उस एक अंत्येष्टि की औपचारिकता से स्टालिन को मिला रूस का सिंहासन और ट्राटस्की को मैक्सिको में दर्दनाक मौत।

कारण सिर्फ एक, कम्यूनिस्ट पार्टी के आम कार्यकर्ता व जनता ने स्टालिन को लेनिन के ज्यादा नजदीक देखा और उसे लेनिन का उत्तराधिकारी मान लिया।

कब्जा सच्चा झगड़ा झूठा।

और राजनीति ही नहीं जिंदगी की हक़ीकतों में कब्जे का ही महत्व होता है। वो बात अलग है कि आप उस जायज नाजायज कब्जे का इस्तेमाल क्या, कैसे और किसके लिये करते हो।

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आज 2018 में भारत का परिदृश्य :

अंग्रेजों के बोये विषैले आर्य-द्रविड़वाद के बीज से उपजे एक विषैले खरपतवार पेरियार का विषैला फल करुणानिधि जो अंतोत्वगत्वा अपनी नियति को प्राप्त तो हुआ परन्तु अपने पीछे छोड़ गया है एक विशाल जनसमूह जिसमें अधिकांश हिंदी से नफरत करते हैं, कुछ ब्राह्मणों से और कुछ समूचे हिंदुत्व से।

जाहिर है कि तमिलनाडु में द्रमुक व करुणानिधि वैटिकन, इस्लामी, कम्यूनिस्ट और कॉंग्रेस जैसी घोर हिंदू विरोधी शक्तियों का स्वाभाविक कॉमरेड था।

1962 के चीन आक्रमण, एमजीआर व जयललिता के AIADMK, फिर भाजपा के अल्पकालिक साथ और दक्षिण भारत में हिंदी, हिंदुत्व व हिन्दूराष्ट्रवाद के बढ़ते प्रभाव जिसमें दक्षिण भारतीय सिनेमा ने बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया है, के कारण द्रविड़ आंदोलन मृतप्रायः हो गया जिसे इस व्यक्ति ने श्रीराम, रामसेतु व अन्य पूज्य महापुरुषों के विरुद्ध विषवमन कर जीवित बनाये रखने की कोशिश की।

परंतु पहले जयललिता और अब करुणानिधि की मृत्यु से तमिलनाडु में राजनैतिक विरासत का मैदान खाली है और इसके दो दावेदार हैं--

(1) एम के स्टालिन के नेतृत्व में द्रमुक+कमल हासन(प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष)+कांग्रेस

(2)रजनीकांत(प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष)+भाजपा

अब सवाल केवल द्रमुक के कट्टर समर्थकों में सेंध लगाने का है और संघ यही कर रहा है, भाजपा यही कर रही है। नरेंद्र मोदी तो केवल उस नीति को कार्यान्वित कर रहे हैं।

रूस का इतिहास मानो इस बार भारत में दोहराया जा रहा है पर इस बार स्टालिन को वाकओवर नहीं मिलेगा।

ऐ काऊ बैल्ट के लोगों तुम अकेले ही पूरे भारत नहीं हो समुद्रपर्यंत तक भारतवर्ष की सीमायें हैं और तुम लाखों तमिलों को इग्नोर नहीं कर सकते जो पेरियार व करुणानिधि जैसे नागों के उगले हिंदूविरोधी और रामविरोधी विष के प्रभाव में हैं।

पर याद रखना तुममें से भी कई घोर रामविरोधी रावण के प्रशंसक और पूजक हैं जिनके विरुद्ध किसी ने विशेष आवाज नहीं उठाई है।

तो ऐसी स्थिति में अगर एक "मिट्टी के ढेर" को प्रणाम करने से दक्षिण में हिंदी और हिन्दूराष्ट्र की अवधारणा के मुख्य विरोधी किले को भाजपा जीत लेती है तो हिंदुत्व के लिये शुभ होगा क्योंकि जहां जहां भाजपा/आर एस एस शक्तिशाली होंगे राष्ट्रवादी शक्तियाँ और हिंदूराष्ट्रवाद मजबूत होकर उभरेगा क्योंकि--

माना कि "भाजपा/आर एस एस हिंदू राष्ट्रवाद की गंगा नहीं है, हिंदू राष्ट्रवाद की गंगा तो आपलोग हैं, हम लोग हैं पर ये भी सच है कि भाजपा इस गंगा के लिये भगीरथ जरूर हैं"

इसलिये छोटे मोटे नाटकों, प्रोटोकॉल से विचलित मत होइये, मुस्लिमों, ईसाइयों के अविचलित भाजपा/मोदी विरोध की ही तरह अविचलित भाजपा/मोदी का समर्थन कीजिये।

करुणानिधि को लानत मलामत भेजिये, उसे कोसिये पर मोदी की मजबूरियों, प्रोटोकॉल और अंतिम उद्देश्य पर शक मत कीजिये।

यकीन मानिये एक बार दक्षिण में भाजपा स्थाई रूप से जम गयीं तो हिंदू राष्ट्रवाद की सुनामी दक्षिण से उठेगी क्योंकि दक्षिण के भावुक हिंदू जिस व्यक्ति व विचार पर जम जाते हैं तो आप कोरे लिख्खाडों की तरह लफ्फजियाँ नहीं करते वरन उसके लिये वे जान देने व जान लेने में संकोच नहीं करते।

तो अगर करुणानिधि की मिट्टी को प्रणाम करने से, तिरंगा उढ़ाने और यहां तक कि उसे "भारत रत्न" देने से तमिल कट्टरवादी भाजपा की ओर खिंच आते हैं तो यह एक सस्ता सौदा होगा क्योंकि इससे दक्षिण में हिंदू राष्ट्रवाद की गंगा बहेगी।

कभी करुणानिधि ने अन्नादुरै की द्रविड़ विरासत को स्टालिन की तर्ज पर हथियाया था अब इतिहास उलटा लिखा जा रहा है। विषैली द्रविड़ राजनीति की विरासत को उसी तर्ज पर हथियाने मोदी आया है।

यह सिर्फ कर्म का प्रतिफल है, मोदी तो बस माध्यम है।

द्रविड़वाद के झूठ से अपवित्र हुए ह्रदयों में अब हिंदूराष्ट्रवाद की गंगा बहेगी, मोदी तो सिर्फ भगीरथ है।

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